[ऋषि मधुच्छन्दा वैश्वामित्र। देवता १-३ अश्विनीकुमार, ४-६ इन्द्र,७-९
विश्वेदेवा,१०-१२ सरश्वती। छन्द गायत्री]
१९. अश्विना यज्वरीरिषो द्रवपाणी शुभस्पती। पुरुभुजा चनस्यतम् ॥१॥
१९. अश्विना यज्वरीरिषो द्रवपाणी शुभस्पती। पुरुभुजा चनस्यतम् ॥१॥
हे विशालबाहो! शुभ कर्मपालक,द्रुतगति से कार्य सम्पन्न करने वाले
अश्विनी कुमारो ! हमारे द्वारा समर्पित् हविष्यान्नो से आप भली प्रकार सन्तुष्ट हों
॥१॥
1 O long armed Ashvins, rich in treasure, Lords of splendour, having nimble hands, Accept the sacrificial food.
1 O long armed Ashvins, rich in treasure, Lords of splendour, having nimble hands, Accept the sacrificial food.
२०. अश्विना पुरुदंससा नरा शवीरता धिया । धिष्ण्या वनतं गिर:॥२॥
असंख्य कर्मो को संपादित करनेवाले धैर्य धारण करने वाले बुद्धिमान हे अश्विनीकुमारो! आप अपनी उत्तम बुद्धि से हमारी वाणियों (प्रार्थनाओ को स्वीकार् करे ॥२॥
असंख्य कर्मो को संपादित करनेवाले धैर्य धारण करने वाले बुद्धिमान हे अश्विनीकुमारो! आप अपनी उत्तम बुद्धि से हमारी वाणियों (प्रार्थनाओ को स्वीकार् करे ॥२॥
2 O intelligent Ashvins,
rich in wondrous deeds, O heroes worthy of our praise, Accept our songs with excellent
thought.
२१. दस्ना युवाकव: सुता नासत्या वृक्तबर्हिष: । आ यातं रुद्रवर्तनी॥३॥
रोगो को विनष्ट करने वाले, सदा सत्य बोलने वाले रूद्रदेव के समान
(शत्रु संहारक) प्रवृत्ति वाले, दर्शनीय हे अश्विनीकुमारो! आप यहां आये और् बिछी हुई
कुशाओ पर् विराजमान होकर प्रस्तुत संस्कारित सोमरस का पान करें॥३॥
3 destroyer of enemies and always telling truth like Rudra,
wonder-workers, yours are these libations with clipt grass: Come ye whose paths
are red with flame.
२२. इन्द्रा याहि चित्रभानो सुता इमे त्वायव: । अण्वीभिस्तना पूतास:॥४॥
हे अद्भूत् दीप्तिमान् इन्द्रदेव! अंगुलियों द्वारा स्रवित्, श्रेष्ठ पवित्ररायुक्त यह सोमरस आपके निमित्त् है। आप आये और सोमरस का पान करें ॥४॥
4 O Indra marvellously bright, come, these libations of soma longing for thee, coming out purified thus by fine fingers.
२३. इन्द्रा याहि धियेषितो विप्रजूतः सुतावत: । उपब्रम्हाणि वाघत:॥५॥हे अद्भूत् दीप्तिमान् इन्द्रदेव! अंगुलियों द्वारा स्रवित्, श्रेष्ठ पवित्ररायुक्त यह सोमरस आपके निमित्त् है। आप आये और सोमरस का पान करें ॥४॥
4 O Indra marvellously bright, come, these libations of soma longing for thee, coming out purified thus by fine fingers.
हे इन्द्रदेव ! श्रेष्ठ बुद्धि द्वारा जानने योग्य आप,सोमरस प्रस्तुत
करते हुये ऋत्विजो के द्वारा बुलाये गये है। उनकी स्तुति के आधार पर् आप यज्ञशाला मे
पधारें ॥५॥
5 Urged by the holy singer, sped by song, come, Indra, to
the prayers, Of the libation-pouring priest.
२४. इन्द्रा याहि तूतुजान उप ब्रम्हाणि हरिव: । सुते दधिष्व नश्चन:॥६॥
हे अश्वयुक्त इन्द्रदेव! आप स्तवनो के श्रवणार्थ एवं इस यज्ञ मे
हमारे द्वारा प्रदत्त हवियो का सेवन करने के लिये यज्ञशाला मे शीघ्र ही पधारें ॥६॥
6 Approach, O Indra, hasting thee, Lord of Bay Horses, to the prayers. In our libation take delight.
२५ . ओमासश्चर्षणीधृतो विश्वे देवास् आ गत। दाश्वांसो दाशुष: सुतम्॥७॥6 Approach, O Indra, hasting thee, Lord of Bay Horses, to the prayers. In our libation take delight.
हे विश्वदेवो! आप सबकी रक्षा करने वाले, सभी प्राणीयो के आधारभूत
और् सभी को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले है। अत आप इस सोमयुक्त हवि देने वाले यजमान के
यज्ञमे पधारे ॥७॥
7 O Vishvedevas, who protect, reward, and cherish men,
approach Your worshipper's soma drink-offering.
२६. विश्वे देवासो अप्तुर: सुत्मा गन्त तूर्णय: । उस्ना इव स्वसराणि॥८॥
समय समय पर् वर्षा करने वाले हे विश्वदेवो ! आप कर्म कुशल और् द्रुतगति
से कार्य करने वाले है। जिस प्रकार गौवें अपने गौशाला लौटती हैं, आप सूर्य-रश्मियो
के सदृश गतिशील होकर हमे प्राप्त हो ॥८॥
8 O Vishvedevas, swift at work, come hither quickly to the draught, As milch-kine hasten to their stalls.
२७. विश्वे देवासो अस्निध एहिमायासो अद्रुह: मेधं जुषण्त वह्रय:॥९॥8 O Vishvedevas, swift at work, come hither quickly to the draught, As milch-kine hasten to their stalls.
हे विश्वदेवो! आप किसी के द्वारा वध न किये जाने वाले, कर्म कुशल,
द्रोह रहित और् सुखप्रद है। आप हमारे यज्ञ मे उपस्थित होकर हवि का सेवन करें ॥९॥
9 The Vishvedevas, changing shape like serpents, fearless, void of guile, Bearers, accept the sacred draught in the fire.
२८. पावका न: सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती। यज्ञं वष्टु धियावसु:॥१०॥9 The Vishvedevas, changing shape like serpents, fearless, void of guile, Bearers, accept the sacred draught in the fire.
पवित्र बनाने वाली, पोषण देने वाली, बुद्धीमत्तापूर्वक ऐश्वर्य
प्रदान करने वाली सरश्वती ज्ञान और कर्म से हमारे यज्ञ को सफल बनायें ॥१०॥
10 Wealthy in valuables, enriched with hymns, may bright Sarasvatī make our efforts successful.
२९. चोदयित्री सूनृतानां चेतन्ती सुमतीनाम् यज्ञं दधे सरस्वती॥११॥10 Wealthy in valuables, enriched with hymns, may bright Sarasvatī make our efforts successful.
सत्यप्रिय (वचन) बोलने की प्रेरणा देने वाली, मेधावी जनो को यज्ञानुष्ठान
की प्रेरणा (मति) प्रदान करने वाली देवी सरस्वती हमारे इस यज्ञ को स्वीकार करके हमे
अभीष्ट वैभव प्रदान करे ॥११॥
11 Inspiring with of all truthful and pleasant songs, inspirer of all gracious thought, Sarasvatī accept our rite
३०. महो अर्ण: सरस्वती प्र चेतयति केतुना॥ धियो विश्वां वि राजति॥१२॥11 Inspiring with of all truthful and pleasant songs, inspirer of all gracious thought, Sarasvatī accept our rite
जो देवी सरस्वती नदी रूप् मे प्रभूत जल को प्रवाहित करती है। वे
सुमति को जगाने वाली देवी सरस्वती सभी याजको की प्रज्ञा को प्रखर बनाती है ॥१२॥
12 Sarasvatī, flowing the mighty flood,— she with her light illuminates, She brightens every pious thought.
12 Sarasvatī, flowing the mighty flood,— she with her light illuminates, She brightens every pious thought.
No comments:
Post a Comment