योगिनीतंत्र
मे वर्णन है
की कलयुग मे
वैदिक मंत्र विष
हीन सर्प के
सामान होजाएगा। ऐसा
कलयुग में शुद्ध
और अशुद्ध के
बीच में कोई
भेद भावः न
रह जानेकी वजह
से होगा। कलयुग
में लोग वेद
में बताये गए
नियमो का पालन
नही करेंगे। इसलिए
नियम और शुद्धि
रहित वैदिक मंत्र
का उच्चारण करने
से कोई लाभ
नही होगा। जो
व्यक्ति वैदिक मंत्रो का
कलयुग में उच्चारण
करेगा उसकी व्यथा
एक ऐसे प्यासे
मनुष्य के सामान
होगी जो गंगा
नदी के समीप
प्यासे होने पर
कुआँखोद कर अपनी
प्यास बुझाने की
कोशिश में अपना
समय और उर्जा
को व्यर्थ करताहै।
कलयुग में वैदिक
मंत्रो का प्रभाव
ना के बराबर
रह जाएगा। और
गृहस्त लोग जो
वैसे ही बहुत
कम नियमो को
जानते हैं उनकी
पूजा का फल
उन्हे पूर्णतः नही
मिल पायेगा। महादेव
ने बताया की
वैदिक मंत्रो का
पूर्ण फल सतयुग,
द्वापरतथा त्रेता युग में
ही मिलेगा.
तब माँ पार्वती
ने महादेव से
पुछा की कलयुग
में मनुष्य अपने
पापों का नाश
कैसे करेंगे? और
जो फल उन्हे
पूजा अर्चना से
मिलता है वह
उन्हे कैसे मिलेगा?
इस पर शिव
जी ने कहा
की कलयुगमें तंत्र
साधना ही सतयुग
की वैदिक पूजा
की तरह फल
देगा। तंत्र में
साधक को बंधन
मुक्त कर दिया
जाएगा। वह अपने
तरीके से इश्वर
को प्राप्त करने
केलिए अनेको प्रकार
के विज्ञानिक प्रयोग
करेगा।
परन्तु ऐसा करने
के लिएसाधक के
अन्दर इश्वर को
पाने का नशा
और प्रयोगों से
कुछ प्राप्त करने
की तीव्र इच्छा होनी
चाहिए। तंत्र के प्रायोगिक
क्रियाओं को करने
के लिए एकतांत्रिक
अथवा साधक को
सही मंत्र, तंत्र
और यन्त्र का
ज्ञान जरुरी है।
मंत्र
मंत्र एक सिद्धांत
को कहते हैं।
किसी भी आविष्कार
को सफल बनाने
के लिए एकसही
मार्ग और सही
नियमों की आवश्यकता
होती है। मंत्र
वही सिद्धांत है
जो एकप्रयोग को
सफल बनाने में
तांत्रिक को मदद
करता है। मंत्र
द्वारा ही यह
पताचलता है की
कौन से तंत्र
को किस यन्त्र
में समिलित कर
के लक्ष्य तक
पंहुचाजा सकता है।
मंत्र के सिद्ध
होने पर ही
पूरा प्रयोग सफल
होता है। जैसे
क्रिंग ह्रंग स्वाहा एक
सिद्ध मंत्र है।
मंत्र मन तथा
त्र शब्दों से
मिल कर बना
है। मंत्र में
मन का अर्थ
है मनन करनाअथवा
ध्यानस्त होना तथा
त्र का अर्थ
है रक्षा। इस
प्रकार मंत्र का अर्थ
है ऐसा मनन
करना जो मनन
करने वाले की
रक्षा कर सके।अर्थात
मन्त्र के उच्चारण
या मनन से
मनुष्य की रक्षा
होती है।
तंत्र
सृष्टि में इश्वर
ने हरेक समस्या
का समाधान स्वयम
दिया हुआ है।
ऐसी कोई बीमारी
या परेशानी नही
जिसका समाधान इश्वर
ने इस धरती
पर किसी न
किसी रूप में
न दिया हो।
तंत्र श्रृष्टि में
पाए गए रासायनिक
या प्राकृतिक वस्तुओं
के सही समाहार
की कला को
कहते हैं। इस
समाहार से बनने
वाली उस औषधि
या वस्तु से
प्राणियों का कल्याण
होता है।
तंत्र तन तथा
त्र शब्दों से
मिल कर बना
है । जो
वस्तु इस तन
की रक्षा करे
उसे ही तंत्र
कहते हैं।
यन्त्र:
मंत्र और तंत्र
को यदि सही
से प्रयोग किया
जाए तो वह
प्राणियों के कष्ट
दूर करने में
सफल है। पर
तंत्र के रसायनों
को एक उचित
पात्र को आवश्यकता
होती है। ताकि
साधारण मनुष्य उस पात्र
को आसानी से
अपने पास रख
सके या उसका
प्रयोग कर सके।
इस पात्र या
साधन को ही
यन्त्र कहते हैं।
एक ऐसा पात्र
जो तंत्र और
मन्त्र को अपने
में समिलित कर
के आसानी से
प्राणियों के कष्ट
दूर करे वही
यन्त्र है। हवन
कुंड को सबसे
श्रेष्ठ यन्त्र माना गया
है। आसन, तलिस्मान,
ताबीज इत्यादि भी
यंत्र माने जाते
है। कई प्रकार
को आकृति को
भी यन्त्र मन
गया है। जैसे
श्री यन्त्र, काली
यन्त्र, महा मृतुन्जय
यन्त्र इत्यादि।
यन्त्र शब्द यं
तथा त्र के
मिलाप से बना
है। यं को
पुर्व में यम
यानी काल कहा
जाता था। इसलिए
जो यम से
हमारी रक्षा करे
उसे ही यन्त्र
कहा जाता है।
इसलिए एक सफल
तांत्रिक साधक को
मंत्र, तंत्र और यन्त्र
का पूर्ण ज्ञान
होना चाहिए।
विज्ञानं के प्रयोगों
जैसे ही यदि
तीनो में से
किसी की भी
मात्रा या प्रकार
ग़लत हुई तो
सफलता नही मिलेगी।
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