मंत्र जाप करने
के भी कुछ
नियम होते हैं।
यदि आप उन
नियमों का पालन
करेंगे तो आपके
घर में न
केवल सुख-शांति
आयेगी, बल्कि आपका स्वाकस्य्े
भी अच्छाी रहेगा
1-वाचिक जप
वाणी द्वारा सस्वर मंत्र
का उच्चारण करना
वाचिक जप की
श्रेणी में आता
है।
2- उपांशु जप-
अपने इष्ट भगवान
के ध्यान में
मन लगाकर, जुबान
और ओंठों को
कुछ कम्पित करते
हुए, इस प्रकार
मंत्र का उच्चारण
करें कि केवल
स्वंय को ही
सुनाई पड़े। ऐसे
मंत्रोचारण को उपांशु
जप कहते है।
3- मानसिक जप-
इस जप में
किसी भी प्रकार
के नियम की
बाध्यता नहीं होती
है। सोते समय,
चलते समय, यात्रा
में एंव शौच
आदि करते वक्त
भी ’ मंत्र’ जप
का अभ्यास किया
जाता है। मानसिक
जप सभी दिशाओं
एंव दशाओं में
करने का प्रावधान
है।
इन नियमों का भी
पालन करें
1- शरीर की शुद्धि
आवश्यक है। अतः
स्नान करके ही
आसन ग्रहण करना
चाहिए। साधना करने के
लिए सफेद कपड़ों
का प्रयोग करना
सर्वथा उचित रहता
है।
2- साधना के लिए
कुश के आसन
पर बैठना चाहिए
क्योंकि कुश उष्मा
का सुचालक होता
है। और जिससे
मंत्रोचार से उत्पन्न
उर्जा हमारे शरीर
में समाहित होती
है।
3- मेरूदण्ड
हमेशा सीधा रखना
चाहिए, ताकि सुषुम्ना
में प्राण का
प्रवाह आसानी से हो
सके।
4- साधारण जप में
तुलसी की माला
का प्रयोग करना
चाहिए। कार्य सिद्ध की
कामना में चन्दन
या रूद्राक्ष की
माला प्रयोग हितकर
रहता है।
5- ब्रह्रममुहूर्त
में उठकर ही
साधना करना चाहिए
क्योंकि प्रातः काल का
समय शुद्ध वायु
से परिपूर्ण होता
है। साधना नियमित
और निश्चित समय
पर ही की
जानी चाहिए।
6- अक्षत, अंगुलियों के पर्व,
पुष्प आदि से
मंत्र जप की
संख्या नहीं गिननी
चाहिए।
7- मंत्र शक्ति का अनुभव
करने के लिए
कम से कम
एक माला नित्य
जाप करना चाहिए।
8- मंत्र का जप
प्रातः काल पूर्व
दिशा की ओर
मुख करके करना
चाहिए एंव सांयकाल
में पश्चिम दिशा
की ओर मुख
करके जप करना
श्रेष्ठ माना गया
है।
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