बगला उत्पत्ति
एक बार समुद्र
में संशय नामक
राक्षस ने बहुत
बड़ा प्रलय मचाया,
विष्णु उसका संहार
नहीं कर सके
तो उन्होंने सौराष्ट्र
देश में हरिद्रा
सरोवर के समीप
महा-त्रिपुर-सुन्दरी
की आराधना की
तो श्रीविद्या ने
ही ‘बगला रुप
में प्रकट होकर
संशय राक्षस का
वध किया ।
मंगलवार युक्त चतुर्दशी, मकर-कुल नक्षत्रों
से युक्त वीर-रात्रि कही जाती
है ।
इसी अर्द्ध-रात्रि में
श्री बगला का
आविर्भाव हुआ था
।
मकर-कुल
नक्षत्र – भरणी, रोहिणी, पुष्य,
मघा, उत्तरा-फाल्गुनी,
चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ा,
श्रवण तथा उत्तर-भाद्रपद नक्षत्र है
।
बगलामुखी देवी दश
महाविद्याओं में आठवीं
महाविद्या का नाम
से उल्लेखित है
।
वैदिक शब्द ‘वल्गा’ कहा
है, जिसका अर्थ
कृत्या सम्बन्ध है, जो
बाद में अपभ्रंश
होकर बगला नाम
से प्रचारित हो
गया ।
बगलामुखी शत्रु-संहारक विशेष
है अतः इसके
दक्षिणाम्नायी पश्चिमाम्नायी मंत्र अधिक मिलते
हैं ।
नैऋत्य व पश्चिमाम्नायी
मंत्र प्रबल संहारक
व शत्रु को
पीड़ा कारक होते
हैं ।
इसलिये इसका प्रयोग
करते समय व्यक्ति
घबराते हैं ।
वास्तव में इसके
प्रयोग में सावधानी
बरतनी चाहिये ।
ऐसी बात नहीं
है कि यह
विद्या शत्रु-संहारक ही
है, ध्यान योग
में इससे विशेष
सहयता मिलती है
।
यह विद्या प्राण-वायु
व मन की
चंचलता का स्तंभन
कर ऊर्ध्व-गति
देती है, इस
विद्या के मंत्र
के साथ ललितादि
विद्याओं के कूट
मंत्र मिलाकर भी
साधना की जाती
है ।
बगलामुखी मंत्रों के साथ
ललिता, काली व
लक्ष्मी मंत्रों से पुटित
कर व पदभेद
करके प्रयोग में
लाये जा सकते
हैं ।
इस विद्या के ऊर्ध्व-आम्नाय व उभय
आम्नाय मंत्र भी हैं,
जिनका ध्यान योग
से ही विशेष
सम्बन्ध रहता है
।
त्रिपुर सुन्दरी के कूट
मन्त्रों के मिलाने
से यह विद्या
बगलासुन्दरी हो जाती
है, जो शत्रु-नाश भी
करती है तथा
वैभव भी देती
है ।
बगलामुखी की साधना
:-
बगलामुखी देवी की
गणना दस महाविद्याओं
में है तथा
संयम-नियमपूर्वक बगलामुखी
के पाठ-पूजा,
मंत्र जाप, अनुष्ठान
करने से उपासक
को सर्वाभीष्ट की
सिद्धि प्राप्त होती है।
शत्रु विनाश, मारण-मोहन, उच्चाटन, वशीकरण
के लिए बगलामुखी
से बढ़ कर
कोई साधना नहीं
है। मुकद्दमे में
इच्छानुसार विजय प्राप्ति
कराने में तो
यह रामबाण है।
बाहरी शत्रुओं की
अपेक्षा आंतरिक शत्रु अधिक
प्रबल एवं घातक
होते हैं। अतः
बगलामुखी साधना की, मानव
कल्याण, सुख-समृद्धि
हेतु, विशेष उपयोगिता
दृष्टिगोचर होती है।
यथेच्छ धन प्राप्ति,
संतान प्राप्ति, रोग
शांति, राजा को
वश में करने
हेतु कारागार (जेल)
से मुक्ति, शत्रु
पर विजय, मारण
आदि प्रयोगों हेतु
प्राचीन काल से
ही बगलामुखी प्रयोग
द्वारा लोगों की इच्छा
पूर्ति होती रही
है।
आज भी राजनीतिज्ञगण
इस महाविद्या की
साधना करते हैं।
चुनावों के दौरान
प्रत्याशीगण मां का
आशीर्वाद लेने उनके
मंदिर अवश्य जाते
हैं।
भारतवर्ष में इस
शक्ति के केवल
तीन ही शक्ति
पीठ हैं – 1)कामाख्या
2) हिमाचल में ज्वालामुखी
से 22 किमी दूर
वनखंडी नामक स्थान
पर। और 3) दतिया
में पीतांबरा पीठ
महर्षि च्यवन ने इसी
विद्या के प्रभाव
से इन्द्र के
वज्र को स्तम्भित
कर दिया था
। आदिगुरु शंकराचार्य
ने अपने गुरु
श्रीमद्-गोविन्दपाद की समाधि
में विघ्न डालने
पर रेवा नदी
का स्तम्भन इसी
विद्या के प्रभाव
से किया था
। महामुनि निम्बार्क
ने एक परिव्राजक
को नीम के
वृक्ष पर सूर्य
के दर्शन इसी
विद्या के प्रभाव
से कराए थे
। इसी विद्या
के कारण ब्रह्मा
जी सृष्टि की
संरचना में सफल
हुए ।
श्री बगला शक्ति
कोई तामसिक शक्ति
नहीं है, बल्कि
आभिचारिक कृत्यों से रक्षा
ही इसकी प्रधानता
है । इस
संसार में जितने
भी तरह के
दुःख और उत्पात
हैं, उनसे रक्षा
के लिए इसी
शक्ति की उपासना
करना श्रेष्ठ होता
है । शुक्ल
यजुर्वेद माध्यंदिन संहिता के
पाँचवें अध्याय की २३,
२४ एवं २५वीं
कण्डिकाओं में अभिचारकर्म
की निवृत्ति में
श्रीबगलामुखी को ही
सर्वोत्तम बताया है ।
शत्रु विनाश के
लिए जो कृत्या
विशेष को भूमि
में गाड़ देते
हैं, उन्हें नष्ट
करने वाली महा-शक्ति श्रीबगलामुखी ही
है ।
त्रयीसिद्ध
विद्याओं में आपका
पहला स्थान है
। आवश्यकता में
शुचि-अशुचि अवस्था
में भी इसके
प्रयोग का सहारा
लेना पड़े तो
शुद्धमन से स्मरण
करने पर भगवती
सहायता करती है
। लक्ष्मी-प्राप्ति
व शत्रुनाश उभय
कामना मंत्रों का
प्रयोग भी सफलता
से किया जा
सकता है ।
देवी को वीर-रात्रि भी कहा
जाता है, क्योंकि
देवी स्वम् ब्रह्मास्त्र-रूपिणी हैं, इनके
शिव को एकवक्त्र-महारुद्र तथा मृत्युञ्जय-महादेव कहा जाता
है, इसीलिए देवी
सिद्ध-विद्या कहा
जाता है ।
विष्णु भगवान् श्री कूर्म
हैं तथा ये
मंगल ग्रह से
सम्बन्धित मानी गयी
हैं ।
शत्रु व राजकीय
विवाद, मुकदमेबाजी में विद्या
शीघ्र-सिद्धि-प्रदा
है । शत्रु
के द्वारा कृत्या
अभिचार किया गया
हो, प्रेतादिक उपद्रव
हो, तो उक्त
विद्या का प्रयोग
करना चाहिये ।
बगला उपासना व दश महाविद्याओं में मंत्र जाग्रति हेतु शापोद्धार मंत्र, सेतु, महासेतु, कुल्कुलादि मंत्र का जप करना जरुरी है । अतः उनकी संक्षिप्त जानकारी व अन्य विषय साधकों के लिये आवश्यक है ।
नाम – बगलामुखी, पीताम्बरा, ब्रह्मास्त्र-विद्या ।
आम्नाय – मुख आम्नाय
दक्षिणाम्नाय हैं इसके
उत्तर, ऊर्ध्व व उभयाम्नाय
मंत्र भी हैं
।
आचार – इस विद्या
का वामाचार क्रम
मुख्य है, दक्षिणाचार
भी है ।
कुल – यह श्रीकुल
की अंग-विद्या
है ।
शिव – इस विद्या
के त्र्यंबक शिव
हैं ।
भैरव – आनन्द भैरव हैं
। कई विद्वान
आनन्द भैरव को
प्रमुख शिव व
त्र्यंबक को भैरव
बताते हं । स्वर्णाकर्षण भैरव का प्रयोग भी उपयुक्त है ।
गणेश – इस विद्या
के हरिद्रा-गणपति
मुख्य गणेश हैं
।
यक्षिणी – विडालिका यक्षिणी का
मेरु-तंत्र में
विधान है ।
प्रयोग हेतु अंग-विद्यायें -मृत्युञ्जय, बटुक, आग्नेयास्त्र, वारुणास्त्र, पार्जन्यास्त्र, संमोहनास्त्र, पाशुपतास्त्र, कुल्लुका, तारा स्वप्नेश्वरी, वाराही मंत्र की उपासना करनी चाहिये ।
प्रयोग हेतु अंग-विद्यायें -मृत्युञ्जय, बटुक, आग्नेयास्त्र, वारुणास्त्र, पार्जन्यास्त्र, संमोहनास्त्र, पाशुपतास्त्र, कुल्लुका, तारा स्वप्नेश्वरी, वाराही मंत्र की उपासना करनी चाहिये ।
कुल्लुका –
“ॐ क्ष्रौं” अथवा
“ॐ हूँ क्षौं”
शिर में १०
बार जप करना
।
सेतु – कण्ठ में
१० बार “ह्रीं”
मंत्र का जप
करें ।
महासेतु –
“स्त्रीं” इसका हृदय
में १० बार
जप करें ।
निर्वाण – हूं, ह्रीं
श्रीं से संपुटित
करे एवं मंत्र
जप करें ।
दीपन पुरश्चरण आदि में “ईं” से सम्पुटित मंत्र का जप करें ।
दीपन पुरश्चरण आदि में “ईं” से सम्पुटित मंत्र का जप करें ।
जीवन – मूल मंत्र
के अंत में
” ह्रीं ओं स्वाहा”
१० बार जपे
। नित्य आवश्यक
नहीं है ।
मुख-शोधन – “हं ह्रीं
ऐं” मुख में
१० बार मंत्र
जप करें ।
शापोद्धार
– “ॐ ह्लीं बगले
रुद्रशायं विमोचय विमोचय ॐ
ह्लीं स्वाहा” १०
बार जपे ।
उत्कीलन –
“ॐ ह्लीं स्वाहा”
मंत्र के आदि
में १० बार
जपे ।….
बगलामुखी एकाक्षरी मंत्र –
|| ॐ ह्लीं ॐ ||
‘’ ह्लीं
‘’ को स्थिर माया
कहते हैं ।
यह मंत्र दक्षिण
आम्नाय का है
। दक्षिणाम्नाय में
बगलामुखी के दो
भुजायें हैं ।
अन्य बीज “ह्रीं”
का उल्लेख भी
बगलामुखी के मंत्रों
में आता है,
इसे “भुवन-माया”
भी कहते हैं
। चतुर्भुज रुप
में यह विद्या
विपरीत गायत्री (ब्रह्मास्त्र विद्या)
बन जाती है
। ह्रीं बीज-युक्त अथवा चतुर्भुज
ध्यान में बगलामुखी
उत्तराम्नाय या उर्ध्वाम्नायात्मिका
होती है ।
ह्ल्रीं बीज का
उल्लेख ३६ अक्षर
मंत्र में होता
है ।
(सांख्यायन
तन्त्र)
विनियोगः- ॐ अस्य
एकाक्षरी बगला मंत्रस्य
ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः,
बगलामुखी देवता, लं बीजं,
ह्रीं शक्तिः ईं
कीलकं, सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे
विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- ब्रह्मा ऋषये
नमः शिरसि, गायत्री
छन्दसे नमः मुखे,
बगलामुखी देवतायै नमः हृदि,
लं बीजाय नमः
गुह्ये, ह्रीं शक्तये नमः
पादयो, ईं कीलकाय
नमः नाभौ, सर्वार्थ
सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय
नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास कर-न्यास
अंग-न्यास
ह्लां अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय
नमः
ह्लीं तर्जनीभ्यां नमः शिरसे
स्वाहा
ह्लूं मध्यमाभ्यां नमः शिखायै
वषट्
ह्लैं अनामिकाभ्यां नमः कवचाय
हुं
ह्लौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्
ह्लः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय
फट्
ध्यानः- हाथ में
पीले फूल, पीले
अक्षत और जल
लेकर ‘ध्यान’ करे
–
वादीभूकति रंकति क्षिति-पतिः
वैश्वानरः शीतति,
क्रोधी शान्तति दुर्जनः सुजनति
क्षिप्रानुगः खञ्जति ।
गर्वी खर्वति सर्व-विच्च
जड़ति त्वद्यन्त्रणा यन्त्रितः,
श्रीनित्ये
! बगलामुखि ! प्रतिदिनं कल्याणि ! तुभ्यं
नमः ।।
एक लाख जप
कर, पीत-पुष्पों
से हवन करे,
गुड़ोदक से दशांश
तर्पण करे ।
विशेषः- “श्रीबगलामुखी-रहस्यं” में शक्ति
‘हूं’ बतलाई गई
है तथा ध्यान
में पाठन्तर है
– ‘शान्तति’ के स्थान
पर ‘शाम्यति’ ।
मंत्र महोदधि में बगलामुखी
साधना के बारे
में विस्तार से
दिया हुआ है।
साधना में सावधानियां
बगलामुखी तंत्र के विषय
में बतलाया गया
है – बगलासर्वसिद्धिदा सर्वाकामना
वाप्नुयात’ अर्थात बगलामुखी देवी
का स्तवन पूजा
करने वालों की
सभी कामनाएं पूर्ण
होती हैं।
‘सत्ये काली च
अर्थात बगला शक्ति
को त्रिशक्तिरूपिणी माना
गया है। वस्तुतः
बगलामुखी की साधना
में साधक भय
से मुक्त हो
जाता है। किंतु
बगलामुखी की साधना
में कुछ विशेष
सावधानियां बरतना अनिवार्य है
जो इस प्रकार
हैं। पूर्ण ब्रह्मचर्य
का पालन करना
चाहिए। साधना क्रम में
स्त्री का स्पर्श
या चर्चा नहीं
करनी चाहिए। साधना
डरपोक या बच्चों
को नहीं करनी
चाहिए।
बगलामुखी देवी अपने
साधक को कभी-कभी भयभीत
भी करती हैं।
अतः दृढ़ इच्छा
और संकल्प शक्ति
वाले साधक ही
साधना करें। साधना
आरंभ करने से
पूर्व गुरु का
ध्यान और पूजा
अनिवार्य है। बगलामुखी
के भैरव मृत्युंजय
हैं। अतः साधना
से पूर्व महामृत्यंजय
का कम से
कम एक माला
जप अवश्य करें।
वस्त्र, आसन आदि
पीले होने चाहिए।
साधना उत्तर की
ओर मुंह कर
के ही करें।
मंत्र जप हल्दी
की माला से
करें। जप के
बाद माला गले
में धारण करें।
ध्यान रखें, साधना
कक्ष में कोई
अन्य व्यक्ति प्रवेश
न करे, न
ही कोई माला
का स्पर्श करे।
साधना रात्रि के
8.00 से भोर 3.00 बजे के
बीच ही करें।
मंत्र जप की
संख्या अपनी क्षमतानुसार
निश्चित करें, फिर उससे
न तो कम
न ही अधिक
जप करें।
मंत्र
जप 16 दिन में
पूरा हो जाना
चाहिए। मंत्र जप के
लिए शुक्ल पक्ष
या नवरात्रि सर्वश्रेष्ठ
समय है। मंत्र
जप से पहले
संकल्प हेतु जल
हाथ में लेकर
अपनी इच्छा स्पष्ट
रूप से बोल
कर व्यक्त करें।
साधना काल में
इसकी चर्चा किसी
से न करें।
साधना काल में
अपने बायीं ओर
तेल का तथा
अपने दायीं ओर
घी का अखंड
दीपक जलाएं।
उपासना विधि :-
किसी भी
शुभ मुहूर्त में
सोने, चांदी, या
तांबे के पत्र
पर मां बगलामुखी
के यंत्र की
रचना करें। यंत्र
यथासंभव उभरे हुए
रेखांकन में हो।
इस यंत्र की
प्राण प्रतिष्ठा कर
नियमित रूप से
पूजा करें। इस
यंत्र को रविपुष्य
या गुरुपुष्य योग
में मां बगलामुखी
के चित्र के
साथ स्थापित करें।
फिर सब से
पहले बगला माता
का ध्यान कर
विनियोग करें गणेशजी
का पूजन, संकल्प
, गुरुजी का पूजन
, पंचदेवता पूजन, भैरव पूजन
, भूतशुद्धि , कलशस्थापन प्राणप्रतिस्ठा , पीठमातृका
न्यास , पीठपूजन करें |
निम्न
मंत्र पढ़कर विनियोग
करें :-
विनियोग मंत्र :- ॐ अस्य
श्री बगलामुखी मंत्रस्य
नारद ऋषिः त्रिष्टुपछंदः
श्री बगलामुखी देवता
ह्लीं बीजं स्वाहा
शक्तिः ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे
विनियोगः।( दाएं हाथ
में जल में
जल लेकर मंत्र
का उच्चारण करते
हुए चित्र के
आगे छोड़ दें
)–
करन्यास :-
————
ॐ ह्ल्रीम अगुष्ठाभ्यां नमः
|
बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः सर्वदुष्टानां
मध्यमाभ्यां नमः |
वाचं मुखं पदं
स्तंभय अनामिकाभ्यां नमः |
जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां
नमः |
बुद्धिं विनाशय ह्ल्रीम ॐ
स्वाहा करतल कर
पृष्ठाभ्यां नमः |
षडअंगन्यास
:-
ॐ ह्ल्रीम हृदयाम नमः
|
बगलामुखी शिरसे स्वाहा |
सर्वदुष्टानां
शिखायै वषट् |
वाचं मुखं पदं
स्तम्भयं कवचाय हुंम |
जिह्वां कीलय नेत्रत्रयाय
वौषट् |
बुद्धि विनाशय ह्ल्रीम ॐ
स्वाहा अस्त्राय फट्।
ध्यान :-
——-
मध्ये सुधाब्धि मणि मंडप
रत्नवेद्यां |
सिंहासनो परिगतां परिपीतवर्णाम् ||
पीताम्बरा भरणमाल्य विभूषितांगी |
देवी नजामि घृतमुद्गर वैरिजिहवाम्।।
जिह्वाग्रमादाय
करेण देवीं। वामेन
शत्रून् परिपीडयंतीम् ||
गदाभिघातेन
व दक्षिणेन। पीतांबराढ्यां
द्विभुजां नमामि।।
अब षोडशोपचार पूजन करने
के बाद आवरण
पूजा , स्तोत्र , सहस्त्रनाम , बगलहृदय
पाठ करें पश्चात
उपरोक्त उद्धृत बगला उपासनायां
उपयोगी कुल्कुलादि साधना एवं
प्राणायाम करके 36 अक्षर का
मूल मंत्र जप
करे ( प्रतिदिन कम
से कम 5000 मंत्र
जप आवश्यक है
)
36 अक्षर का मंत्र
–
———————
“ॐ ह्ल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं पदं
स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धिं
विनाश ह्ल्रीं ॐ
स्वाहा ।”
प्रणाम :-
———
प्रपद्ये शर्णां देवी श्री
कामाख्या स्वरूपिणीम् ।
शिवश्य दुहितां शुद्धां नमामि
बगलामुखीम् ॥
अंतिम दिन दशांश
हवन , ततदशांश तर्पण
ततदशांश मार्जन ततदशांश ब्राह्मण
भोजन भी करना
आवश्यक है
विशेष :-
1)माँ बगलामुखी का
बीज ‘’ ह्लीं ‘’ है , परंतु
इसमे अग्नि बीज
का संयुक्त कर
‘’ ह्ल्रीम ‘’ का जप
करने पर मंत्र
और भी शक्ति
प्रदान करता है
|
2) माँ बगलामुखी दशमहाविद्या में
से हैं अतः
गुरुवर के सान्निध्य
में ही साधना
करें अन्यथा हानि
की आशंका रहती
है ।
यदि शत्रु का प्रयोग
या प्रेतोपद्रव भारी
हो, तो मंत्र
क्रम में निम्न
विघ्न बन सकते
हैं –
१॰ जप नियम
पूर्वक नहीं हो
सकेंगे ।
२॰ मंत्र जप में
समय अधिक लगेगा,
जिह्वा भारी होने
लगेगी ।
३॰ मंत्र में जहाँ
“जिह्वां कीलय” शब्द आता
है, उस समय
स्वयं की जिह्वा
पर संबोधन भाव
आने लगेगा, उससे
स्वयं पर ही
मंत्र का कुप्रभाव
पड़ेगा ।
४॰ ‘बुद्धिं विनाशय’ पर
परिभाषा का अर्थ
मन में स्वयं
पर आने लगेगा
।
सावधानियाँ:-
१॰ ऐसे समय
में तारा मंत्र
पुटित बगलामुखी मंत्र
प्रयोग में लेवें,
अथवा कालरात्रि देवी
का मंत्र व
काली अथवा प्रत्यंगिरा
मंत्र पुटित करें
। तथा कवच
मंत्रों का स्मरण
करें । सरस्वती
विद्या का स्मरण
करें अथवा गायत्री
मंत्र साथ में
करें ।
२॰ बगलामुखी मंत्र में
“ॐ ह्ल्रीं बगलामुखी
सर्वदुष्टानां वाचं मुखं
पदं स्तंभय जिह्वां
कीलय बुद्धिं विनाश
ह्ल्रीं ॐ स्वाहा
।” इस मंत्र
में ‘सर्वदुष्टानां’ शब्द
से आशय शत्रु
को मानते हुए
ध्यान-पूर्वक आगे
का मंत्र पढ़ें
।
३॰ यही संपूर्ण
मंत्र जप समय
‘सर्वदुष्टानां’ की जगह
काम, क्रोध, लोभादि
शत्रु एवं विघ्नों
का ध्यान करें
तथा ‘वाचं मुखं
…….. जिह्वां कीलय’ के समय
देवी के बाँयें
हाथ में शत्रु
की जिह्वा है
तथा ‘बुद्धिं विनाशय’
के समय देवी
शत्रु को पाशबद्ध
कर मुद्गर से
उसके मस्तिष्क पर
प्रहार कर रही
है, ऐसी भावना
करें ।
४॰ बगलामुखी के अन्य
उग्र-प्रयोग वडवामुखी,
उल्कामुखी, ज्वालामुखी, भानुमुखी, वृहद्-भानुमुखी, जातवेदमुखी इत्यादि
तंत्र ग्रथों में
वर्णित है ।
समय व परिस्थिति
के अनुसार प्रयोग
करना चाहिये ।
५॰ बगला प्रयोग
के साथ भैरव,
पक्षिराज, धूमावती विद्या का
ज्ञान व प्रयोग
करना चाहिये ।
६॰ बगलामुखी उपासना पीले
वस्त्र पहनकर, पीले आसन
पर बैठकर करें
। गंधार्चन में
केसर व हल्दी
का प्रयोग करें,
स्वयं के पीला
तिलक लगायें ।
दीप-वर्तिका पीली
बनायें । पीत-पुष्प चढ़ायें, पीला
नैवेद्य चढ़ावें । हल्दी
से बनी हुई
माला से जप
करें । अभाव
में रुद्राक्ष माला
से जप करें
| अन्य किसी माला
से जप कभी
न करें |
.2…पीताम्बरा
बगलामुखी खड्ग मालामन्त्र
यह स्तोत्र शत्रुनाश एवं
कृत्यानाश, परविद्या छेदन करने
वाला एवं रक्षा
कार्य हेतु प्रभावी
है । साधारण
साधकों को कुछ
समय आवेश व
आर्थिक दबाव रहता
है, अतः पूजा
उपरान्त नमस्तस्यादि शांति स्तोत्र
पढ़ने चाहिये ।
विनियोगः- ॐ अस्य
श्रीपीताम्बरा बगलामुखी खड्गमाला मन्त्रस्य
नारायण ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः,
बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं,
स्वाहा शक्तिः, ॐ कीलकं,
ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे
विनियोगः ।
हृदयादि-न्यासः-
नारायण ऋषये
नमः शिरसि, त्रिष्टुप्
छन्दसे नमः मुखे,
बगलामुखी देवतायै नमः हृदि,
ह्लीं बीजाय नमः
गुह्ये, स्वाहा शक्तये नमः
पादयो, ॐ कीलकाय
नमः नाभौ, ममाभीष्टसिद्धयर्थे
सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगाय
नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास – कर-न्यास
– अंग-न्यास –
ॐ ह्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः
हृदयाय नमः
बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः शिरसे
स्वाहा
सर्वदुष्टानां
मध्यमाभ्यां नमः शिखायै
वषट्
वाचं मुखं पद
स्तम्भय अनामिकाभ्यां नमः कवचाय
हुम्
जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां
नमः नेत्र-त्रयाय
वौषट्
बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ
स्वाहा करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय
फट्
ध्यानः-
हाथ में पीले
फूल, पीले अक्षत
और जल लेकर
‘ध्यान’ करे –
मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्यां,
सिंहासनोपरि-गतां परि-पीत-वर्णाम्
।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं, देवीं
स्मरामि धृत-मुद्-गर-वैरि-जिह्वाम् ।।
जिह्वाग्रमादाय
करेण देवीं, वामेन
शत्रून् परि-पीडयन्तीम्
।
गदाभिघातेन
च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां
द्विभुजां नमामि ।।
मानस-पूजनः- इस प्रकार
ध्यान करके भगवती
पीताम्बरा बगलामुखी का मानस
पूजन करें –
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां
नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-कनिष्ठांगुष्ठ-मुद्रा) ।
ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां
नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा)
।
ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि
(ऊर्ध्व-मुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) ।
ॐ रं वह्नयात्मकं
दीपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां
नमः अनुकल्पयामि ।
(ऊर्ध्व-मुख-मध्यमा-अंगुष्ठ-मुद्रा) ।
ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां
नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-अनामिका-अंगुष्ठ-मुद्रा)
। ॐ शं
सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं
श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि
(ऊर्ध्व-मुख-सर्वांगुलि-मुद्रा) ।
खड्ग-माला-मन्त्रः-
ॐ ह्लीं सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं स्तम्भय-स्तम्भय बुद्धिं विनाशय-विनाशय अपरबुद्धिं कुरु-कुरु अपस्मारं
कुरु-कुरु आत्मविरोधिनां
शिरो ललाट मुख
नेत्र कर्ण नासिका
दन्तोष्ठ जिह्वा तालु-कण्ठ
बाहूदर कुक्षि नाभि पार्श्वद्वय
गुह्य गुदाण्ड त्रिक
जानुपाद सर्वांगेषु पादादिकेश-पर्यन्तं
केशादिपाद-पर्यन्तं स्तम्भय-स्तम्भय
मारय-मारय परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्राणि छेदय-छेदय आत्म-मन्त्र-यन्त्र-तन्त्राणि
रक्ष-रक्ष, सर्व-ग्रहान् निवारय-निवारय
सर्वम् अविधिं विनाशय-विनाशय
दुःखं हन-हन
दारिद्रयं निवारय निवारय, सर्व-मन्त्र-स्वरुपिणि सर्व-शल्य-योग-स्वरुपिणि दुष्ट-ग्रह-चण्ड-ग्रह
भूतग्रहाऽऽकाशग्रह चौर-ग्रह
पाषाण-ग्रह चाण्डाल-ग्रह यक्ष-गन्धर्व-किंनर-ग्रह
ब्रह्म-राक्षस-ग्रह भूत-प्रेतपिशाचादीनां शाकिनी डाकिनी ग्रहाणां
पूर्वदिशं बन्धय-बन्धय, वाराहि
बगलामुखी मां रक्ष-रक्ष दक्षिणदिशं
बन्धय-बन्धय, किरातवाराहि
मां रक्ष-रक्ष
पश्चिमदिशं बन्धय-बन्धय, स्वप्नवाराहि
मां रक्ष-रक्ष
उत्तरदिशं बन्धय-बन्धय, धूम्रवाराहि
मां रक्ष-रक्ष
सर्वदिशो बन्धय-बन्धय, कुक्कुटवाराहि
मां रक्ष-रक्ष
अधरदिशं बन्धय-बन्धय, परमेश्वरि
मां रक्ष-रक्ष
सर्वरोगान् विनाशय-विनाशय, सर्व-शत्रु-पलायनाय सर्व-शत्रु-कुलं मूलतो
नाशय-नाशय, शत्रूणां
राज्यवश्यं स्त्रीवश्यं जनवश्यं दह-दह पच-पच सकल-लोक-स्तम्भिनि
शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय स्तम्भनमोहनाऽऽकर्षणाय
सर्व-रिपूणाम् उच्चाटनं
कुरु-कुरु ॐ
ह्लीं क्लीं ऐं
वाक्-प्रदानाय क्लीं
जगत्त्रयवशीकरणाय सौः सर्वमनः
क्षोभणाय श्रीं महा-सम्पत्-प्रदानाय ग्लौं सकल-भूमण्डलाधिपत्य-प्रदानाय दां चिरंजीवने
।
ह्रां ह्रीं ह्रूं क्लां
क्लीं क्लूं सौः
ॐ ह्लीं बगलामुखि
सर्वदुष्टानां वाचं मुखं
पदं स्तम्भय जिह्वां
कीलय बुद्धिं विनाशय
राजस्तम्भिनि क्रों क्रों छ्रीं
छ्रीं सर्वजन संमोहिनि
सभास्तंभिनि स्त्रां स्त्रीं सर्व-मुख-रञ्जिनि
मुखं बन्धय-बन्धय
ज्वल-ज्वल हंस-हंस राजहंस
प्रतिलोम इहलोक परलोक परद्वार
राजद्वार क्लीं क्लूं घ्रीं
रुं क्रों क्लीं
खाणि खाणि , जिह्वां
बन्धयामि सकलजन सर्वेन्द्रियाणि बन्धयामि
नागाश्व मृग सर्प
विहंगम वृश्चिकादि विषं निर्विषं
कुरु-कुरु शैलकानन
महीं मर्दय मर्दय
शत्रूनोत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय
महोग्रभूतजातं बन्धयामि बन्धयामि अतीतानागतं
सत्यं कथय-कथय
लक्ष्मीं प्रददामि-प्रददामि त्वम्
इह आगच्छ आगच्छ
अत्रैव निवासं कुरु-कुरु
ॐ ह्लीं बगले
परमेश्वरि हुं फट्
स्वाहा ।
विशेषः- मूलमन्त्रवता कुर्याद् विद्यां न
दर्शयेत् क्वचित् ।
विपत्तौ स्वप्नकाले च विद्यां
स्तम्भिनीं दर्शयेत् ।
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः
।
प्रकाशनात्
सिद्धहानिः स्याद् वश्यं मरणं
भवेत् ।
दद्यात् शानताय सत्याय कौलाचारपरायणः
।
दुर्गाभक्ताय
शैवाय मृत्युञ्जयरताय च
।
तस्मै दद्याद् इमं खड्गं
स शिवो नात्र
संशयः ।
अशाक्ताय च नो
दद्याद् दीक्षाहीनाय वै तथा
।
न दर्शयेद् इमं खड्गम्
इत्याज्ञा शंकरस्य च ।।
।। श्रीविष्णुयामले बगलाखड्गमालामन्त्रः ।।
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