Saturday, September 3, 2016

Who is a Brahman? ॥ वज्रसूचिका उपनिषत् ॥ Vajrasuchika Upanishad

वज्रसूचिका उपनिषत्

 Vajrsuchika Upanishat 

वज्रसूचिका उपनिषत् एक संक्षिप्त उपनिषद है

वज्रसुचिकोपनिषद ( वज्रसूचि उपनिषद् ) सामवेद से सम्बद्ध है ! इसमें कुलमंत्र हैं !

 Vajrsuchika Upanishad is a short Upanishad. 

Vajrsuchika Upanishat is related to Samaveda. There are only nine shlokas in it.


ब्राह्मण्यं (= ब्राह्मण की पहचान) क्या है

Braahhmanyam = the identification of the qualities of a Brahmin.

Who is a Brahman?

श्री गुरुभ्यो नमः हरिः

यज्ञ्ज्ञानाद्यान्ति मुनयो ब्राह्मण्यं परमाद्भुतम्।

तत्रैपद्ब्रह्मतत्त्वमहमस्मीति चिन्तये॥

अब हम उस ज्ञान पद पर चर्चा करते हैं जिसे ब्रह्मतत्व कहा जाता है और जिस परम अद्भुत “ब्राह्मण्यं” के जानने में मुनिगण पूरी जिंदगी (आद्यान्ति) लगा देते हैं

आप्यायन्त्विति शान्तिः

चित्सदानन्दरूपाय सर्वधीवृत्तिसाक्षिणे

नमो वेदान्तवेद्याय ब्रह्मणेऽनन्तरूपिणे

सच्चिदानन्दस्वरूप, सबकी बुद्धिका साक्षी, वेदान्तके द्वारा जाननेयोग्य और अनन्त रूपोंवाले ब्रह्मको मैं नमस्कार करता हूँ।

वज्रसूचीं प्रवक्ष्यामि शास्त्रमज्ञानभेदनम्

दूषणं ज्ञानहीनानां भूषणं ज्ञानचक्षुषाम्

अज्ञान नाशक, ज्ञानहीनों के दूषण, ज्ञान नेत्र वालों के भूषन रूप वज्रसूची उपनिषद का वर्णन करता हूँ!!

(After bowing down to Guru, and wishing peace to all concerned) I am now going to teach you the knowledge of Vajrasuchika which dispels ignorance, condemns the ignorant and elevates those who possess the eye of wisdom

ब्राह्मक्षत्रियवैष्यशूद्रा इति चत्वारो वर्णास्तेषां वर्णानां ब्राह्मण एव

प्रधान इति वेदवचनानुरूपं स्मृतिभिरप्युक्तम्

तत्र चोद्यमस्ति को वा ब्राह्मणो नाम किं जीवः किं देहः किं जातिः किं

ज्ञानं किं कर्म किं धार्मिक इति

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण हैं! इन वर्णों में ब्राह्मण ही प्रधान है, ऐसा वेद वचन है और स्मृति में भी वर्णित है!

अब यहाँ प्रश्न यह उठता है कि ब्राह्मण कौन हैं? क्या वह जीव है अथवा कोई शरीर है अथवा जाति अथवा कर्म अथवा ज्ञान अथवा धार्मिकता है?

The Brahmana, the Kshatriya, the Vaisya and the Sudra: these are the four varnas. The Vedas proclaim that the Brahmana is the first among them.

Who is this whom we refer by the name Brahmana? Is he (the subtle body known as) Jiva? Is he the physical body? Is he (the descendent of) the community to which he belongs? Is he (the possessor of) the knowledge? Is he (the doer of) the actions he undertakes? Is he (the performer of) the religious rites he performs?

तत्र प्रथमो जीवो ब्राह्मण इति चेत् तन्न

अतीतानागतानेकदेहानां जीवस्यैकरूपत्वात् एकस्यापि कर्मवशादनेकदेहसम्भवात् सर्वशरीराणां जीवस्यैकरूपत्वाच्च

तस्मात् जीवो ब्राह्मण इति

इस स्थिति में यदि सर्वप्रथम जीव को ही ब्राह्मण मानें (कि ब्राह्मण जीव है), तो यह संभव नहीं है; क्योंकि भूतकाल और भविष्यतकाल में अनेक जीव हुए होंगें! उन सबका स्वरुप भी एक जैसा ही होता है! जीव एक होने पर भी स्व-स्व कर्मों के अनुसार उनका जन्म होता है और समस्त शरीरों में, जीवों में एकत्व रहता है, इसलिए केवल जीव को ब्राह्मण नहीं कह सकते!

Of this the first premise that Brahmana is jiva is not tenable because the same jiva enters different bodies in previous lives. Although it is one, due to the impact of the past deeds and desires the same jiva happens to reside in many bodies (in different lives). Therefore a Brahmana is not on account of the jiva.

तर्हि देहो ब्राह्मण इति चेत् तन्न

आचाण्डालादिपर्यन्तानां मनुष्याणां

पञ्चभौतिकत्वेन देहस्यैकरूपत्वात्

जरामरणधर्माधर्मादिसाम्यदर्शनत् ब्राह्मणः श्वेतवर्णः क्षत्रियो

रक्तवर्णो वैश्यः पीतवर्णः शूद्रः कृष्णवर्णः इति नियमाभावात्

पित्रादिशरीरदहने पुत्रादीनां ब्रह्महत्यादिदोषसम्भवाच्च

तस्मात् देहो ब्राह्मण इति

तब क्या शरीर ब्राह्मण (हो सकता) है? नहीं, यह भी नहीं हो सकता! चांडाल से लेकर सभी मानवों के शरीर एक जैसे ही अर्थात पांचभौतिक होते हैं,

उनमें जरा-मरण, धर्म-अधर्म आदि सभी सामान होते हैं! ब्राह्मण- गौर वर्ण, क्षत्रिय- रक्त वर्ण , वैश्य- पीत वर्ण और शूद्र- कृष्ण वर्ण वाला ही हो,

ऐसा कोई नियम देखने में नहीं आता तथा (यदि शरीर ब्राह्मण है तो) पिता, भाई के दाह संस्कार करने से पुत्र आदि को ब्रह्म हत्या का दोष भी लग सकता है!

अस्तु, केवल शरीर का ब्राह्मण होना भी संभव नहीं है!

Then coming to the statement that the body is Brahmana, this also is not acceptable because universally the body is composed of the self same five elements (the earth, the water, the fire, the air and the ether), from the Brahmanas down to the lowest of the human class and subject to the same processes of old age and death, good and evil in all. One cannot also generalize that the Brahmanas have white complexion, the Kshatriyas red complexion, the Vaishyas brown complexion and the Sudras dark complexion,( because these colors are not uniform among these classes). Besides the bodies can become tainted with such sins as the killing of Brahmans, improper cremation of bodies by their descendents and so on. Therefore a Brahmana is not so because of the body.

तर्हि जाति ब्राह्मण इति चेत् तन्न

तत्र जात्यन्तरजन्तुष्वनेकजातिसम्भवात् महर्षयो बहवः सन्ति

ऋष्यशृङ्गो मृग्याः, कौशिकः कुशात्, जाम्बूको जाम्बूकात्, वाल्मीको वाल्मीकात्, व्यासः कैवर्तकन्यकायाम्, शशपृष्ठात् गौतमः, वसिष्ठ उर्वश्याम्, अगस्त्यः कलशे जात इति शृतत्वात्।

एतेषां जात्या विनाप्यग्रे ज्ञानप्रतिपादिता ऋषयो बहवः सन्ति

तस्मात् जाति ब्राह्मण इति

क्या जाति ब्राह्मण है?

(अर्थात ब्राह्मण कोई जाति है)? नहीं, यह भी नहीं हो सकता; क्योंकि विभिन्न जातियों एवं प्रजातियों में भी बहुत से ऋषियों की उत्पत्ति वर्णित है! जैसेमृगी से श्रृंगी ऋषि की, कुश से कौशिक की, जम्बुक से जाम्बूक की, वाल्मिक से वाल्मीकि की, मल्लाह कन्या (मत्स्यगंधा) से वेदव्यास की, शशक पृष्ठ से गौतम की, उर्वशी से वसिष्ठ की, कुम्भ से अगस्त्य ऋषि की उत्पत्ति वर्णित है! इस प्रकार पूर्व में ही कई ऋषि बिना (ब्राह्मण) जाति के ही प्रकांड विद्वान् हुए हैं, इसलिए केवल कोई जाति विशेष भी ब्राह्मण नहीं हो सकती है!

Then it is said that a Brahmana is so because of his caste. This is not acceptable because there are diverse communities in the world, even in the animal world, and the seers and sages come from different communities. We have heard from the sacred scriptures that many seers were of animal origin. Rishyasringa was born of a deer, Kaushika came from the grass, Jambuka from a Jackal, Valkimi from an ant hill, Vyasa from a fisher girl, Gautama from the back of a hare, Vashista from the celestial nymph Urvasi, Agastya from an earthen vessel. Among these many have attained the highest rank, despite of their lower birth and given proof of their wisdom. Therefore a Brahmana is not so because of his community.

तर्हि ज्ञानं ब्राह्मण इति चेत् तन्न। क्षत्रियादयोऽपि

परमार्थदर्शिनोऽभिज्ञा बहवः सन्ति। तस्मात् ज्ञानं ब्राह्मण इति॥

क्या ज्ञान को ब्राह्मण माना जाये?

ऐसा भी नहीं हो सकता; क्योंकि बहुत से क्षत्रिय (राजा जनक) आदि भी परमार्थ दर्शन के ज्ञाता हुए हैं (होते हैं)! अस्तु, केवल ज्ञान भी ब्राह्मण नहीं हो सकता है!

The argument that knowledge makes a Brahmana is also not acceptable because many Kshatriyas and others have seen the Highest Reality and attained perfect knowledge. Therefore a Brahmana is not so because of his knowledge

तर्हि कर्म ब्राह्मण इति चेत् तन्न

सर्वेषां प्राणिनां प्रारब्धसञ्चितागामिकर्मसाधर्म्यदर्शनात्कर्माभिप्रेरिताः सन्तो जनाः क्रियाः कुर्वन्तीति

तस्मात् कर्म ब्राह्मण इति

तो क्या कर्म को ब्राह्मण माना जाये?

नहीं ऐसा भी संभव नहीं है; क्योंकि समस्त प्राणियों के संचित, प्रारब्ध और आगामी कर्मों में साम्य प्रतीत होता है

तथा कर्माभिप्रेरित होकर ही व्यक्ति क्रिया करते हैं! अतः केवल कर्म को भी ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता है!!

That karma (actions) make a Brahmana is not acceptable because we see the existence of prarabdha and sanchita karma in all beings. Impelled by their previous karma only all the saintly people perform their deeds. Therefore a Brahmana is not so because of (present) karma.

तर्हि धार्मिको ब्राह्मण इति चेत् तन्न

क्षत्रियादयो हिरण्यदातारो बहवः सन्ति

तस्मात् धार्मिको ब्राह्मण इति

तब क्या धार्मिक, ब्राह्मण हो सकता है?

यह भी सुनिश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है; क्योंकि क्षत्रिय आदि बहुत से लोग स्वर्ण आदि का दान-पुण्य करते रहते हैं!

अतः केवल धार्मिक भी ब्राह्मण नहीं हो सकता है!!

Then it is also not true that on account of dharma (religious duty or activity) is a Brahmana. There are many Kshatriyas who have given away gold as charity. Therefore a Brahmana is not on account of dharma

तर्हि को वा ब्रह्मणो नाम

यः कश्चिदात्मानमद्वितीयं जातिगुणक्रियाहीनं

षडूर्मिषड्भावेत्यादिसर्वदोषरहितं सत्यज्ञानानन्दानन्तस्वरूपं

स्वयं निर्विकल्पमशेषकल्पाधारमशेषभूतान्तर्यामित्वेन

वर्तमानमन्तर्यहिश्चाकाशवदनुस्यूतमखण्डानन्दस्वभावमप्रमेयं

अनुभवैकवेद्यमपरोक्षतया भासमानं करतळामलकवत्साक्षादपरोक्षीकृत्य

कृतार्थतया कामरागादिदोषरहितः शमदमादिसम्पन्नो भाव मात्सर्य

तृष्णा आशा मोहादिरहितो दम्भाहङ्कारदिभिरसंस्पृष्टचेता वर्तत

एवमुक्तलक्षणो यः एव ब्राह्मणेति शृतिस्मृतीतिहासपुराणाभ्यामभिप्रायः

अन्यथा हि ब्राह्मणत्वसिद्धिर्नास्त्येव

सच्चिदानान्दमात्मानमद्वितीयं ब्रह्म भावयेदित्युपनिषत्

आप्यायन्त्विति शान्तिः

इति वज्रसूच्युपनिषत्समाप्ता

भारतीरमणमुख्यप्राणन्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु

तब ब्राह्मण किसे माना जाये?

(इसका उत्तर देते हुए उपनिषत्कार कहते हैं ) –

जो आत्मा के द्वैत भाव से युक्त ना हो; जाति गुण और क्रिया से भी युक्त हो; षड उर्मियों और षडभावों आदि समस्त दोषों से मुक्त हो; सत्य, ज्ञान, आनंद स्वरुप, स्वयं निर्विकल्प स्थिति में रहने वाला , अशेष कल्पों का आधार रूप , समस्त प्राणियों के अंतस में निवास करने वाला , अन्दर-बाहर आकाशवत संव्याप्त ; अखंड आनंद्वान , अप्रमेय, अनुभवगम्य , अप्रत्येक्ष भासित होने वाले आत्मा का करतल में आमलकवत (हाथ में रखे आंवले या किसी अन्य वस्तु के सदृश) परोक्ष का भी साक्षात्कार करने वाला; काम-रागद्वेष आदि दोषों से रहित होकर कृतार्थ हो जाने वाला ; शम-दम आदि से संपन्न ; मात्सर्य , तृष्णा , आशा,मोह आदि भावों से रहित; दंभ, अहंकार आदि दोषों से चित्त को सर्वथा अलग रखने वाला हो, वही ब्राह्मण है; ऐसा श्रुति, स्मृति-पूरण और इतिहास का अभिप्राय है ! इस (अभिप्राय) के अतिरिक्त किसी भी प्रकार से ब्राह्मणत्व सिद्ध नहीं हो सकता ! आत्मा सत्-चित और आनंद स्वरुप तथा अद्वितीय है ! इस प्रकार ब्रह्मभाव से संपन्न मनुष्यों को ही ब्राह्मण माना जा सकता है ! यही उपनिषद का मत है !

(वज्रसूचिकोपनिषद)

Then who is to be known by the name Brahmana? He who succeeds in perceiving directly the self without a second palpable like an amalaka fruit in the palm of his hand, who is devoid of the distinction of caste, trait and action, who is devoid of all the faults such as the six imperfections and the six states of being, who is of the nature of truth, knowledge, bliss and infinity, who is self-existent, without will power, but the impeller and supporter of all will power, who exists in all as the indwelling spirit, who is within and without of all like the ether, who is of the nature of indivisible bliss, immeasurable, known only through ones direct experience, who manifests himself directly as truth, who has successfully overcome such imperfections as desire and passion, who is filled with the riches of tranquility, who has eliminated from his being such states as envy, greed and infatuation, who lives unaffected by such things as ostentation and egoism- these aforesaid qualities make up a Brahmana.

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