Sunday, June 26, 2016

मयूर पंख या मयूरपिच्छ


मयूरपिच्छ यानी मोर का पंख- एक अति पवित्र जांगम द्रव्य है। भगवान श्रीकृष्ण के प्यारे मोर-मुकुट से सभी अवगत हैं। मोर को राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा प्राप्त है। वास्तु नियमानुसार भी मोर बड़ा ही महत्त्वपूर्ण पक्षी है। तोते की तरह इसे पालने की प्रथा तो नहीं है। पिंजरे में इसे कैद भी नहीं रखा जा सकता है। उन्मुक्तता और विस्तार ही इसका जीवन-दर्शन है। पिंजरे में कैद करते ही थोड़े ही दिनों में रूग्ण होकर प्राण त्याग कर देता है। फिर भी चिड़ियाघरों में बड़े पिंजरों में रखने की धृष्टता तो हम करते ही हैं। शौक और सुविधा हो तो मोर को पालें, किन्तु मुक्त रहने की सुविधा-सहित।
समय-समय पर मोर के पंख अन्य पक्षियों की तरह ही स्वतः झड़ते रहते हैं। इन्हें एकत्र कर तरह-तरह के उपयोगी सामान- पंखे,चंवर,मंजूषा आदि बनाये जाते हैं। मोर के पंख को भस्म बनाकर विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों में प्रयोग किया जाता है। मोर के पंख को हमारे ऋषि-महर्षि लेखनी के रुप में प्रयोग करते थे। यहां वैसे ही कुछ विशिष्ट प्रयोगों की चर्चा की जा रही है।
पूजा सामग्री विक्रेताओं के यहां मयूरपिच्छ सुलभ प्राप्य है। रविपुष्य या गुरुपुष्य योग (भद्रादि रहित) का विचार कर, इसे आदर पूर्वक क्रय कर, घर ले आयें। उपयोग और प्रयोग के अनुसार बने-बनाये मोर-पंखे भी खरीद सकते हैं। घर लाकर गंगाजल से शुद्ध करके, पीले या नीले नवीन वस्त्र का आसन देकर छोटी चौकी/ पीठिका पर आसीन कर दें। पंचोपचार/ षोडशोपचार पूजनोपरान्त श्री कृष्ण पंचाक्षर या सिर्फ सप्तशती का तृतीय बीज का सहस्र जप, दशांश होमादि सहित सम्पन्न कर लें। साधित मयूरपिच्छ का पंखा (चंवर) एक साधक के लिए अद्भुत कल्याणकारी अस्त्र है। इसी प्रकार मोर के पंख को बीस-पचीस के गुच्छे में भी रखकर उक्त विधि से साध सकते हैं। दोनों के प्रयोग भिन्न-भिन्न हैं।
प्रयोग-
Ø साधित मोरपंख से बने चंवर से साधित मंत्रोच्चारण (मानसिक) पूर्वक झाड़ देने से समस्त ग्रह वाधायें शान्त हो जाती हैं। प्रेतादि विभिन्न वायव्य विघ्न भी शमित होते हैं।
Ø साधित मोरपंख जिस घर में समादर पूर्वक रहता है, वहां किसी प्रकार के वास्तु दोष, ग्रह दोष, वायव्य दोष प्रभावी नहीं होते।
Ø दोषग्रस्त वास्तु को वाधित (खंडित) करने,रक्षित करने आदि कार्यों में साधित मोरपंख का उपयोग किया जा सकता है। जैसे, मान लिया किसी के रसोई घर से सटे (एक ही दीवार) शौचालय है, और रसोईघर अपने सही स्थान (अग्निकोण) पर है, तो ऐसी स्थिति में मध्य दीवार पर पांच-सात की संख्या में साधित मोरपंख का प्रयोग कर लाभान्वित हुआ जा सकता है। ध्यातव्य है कि रसोईघर की दिशा सही होनी चाहिए। ऐसा नहीं कि नैऋत्य कोण पर बने रसोईघर में भी मोरपंख स्थापित कर लाभ हो ही जायेगा।
Ø मकान के भीतर चारो कोनों (हो सके तो दसों दिशाओं) -पूरब, अग्नि कोण, दक्षिण, नैऋत्य कोण, नैऋत्य और पश्चिम के मध्य (पाताल खण्ड), पश्चिम, वायव्य कोण, उत्तर, ईशान कोण, ईशान और पूरब के मध्य (आकाश खण्ड)} में साधित मयूरपिच्छ को स्थापित करने से विभिन्न प्रकार के वास्तु दोषों का शमन हो जाता है। हां, पंख की स्थापना के बाद संक्षिप्त रीति से वास्तु होम अवश्य कर दें। इसके लिए किसी योग्य वास्तुशास्त्री से सहयोग लेना चाहिए।
Ø मयूरपिच्छ के कठोर भाग को लेखनी की तरह प्रयोग किया जा सकता है। सरस्वती की साधना में इसका बड़ा महत्त्व है। इस लेखनी से भोजपत्र पर यन्त्र लेखन से यन्त्र में अद्भुत गुण-वृद्धि होती है।
Ø मयूरपिच्छ के बीच एक स्वेत वर्णी मयूर-चांद होता है। एक पंख में यह चांद एक ही होता है। साधित सात पंखों में से इस भाग को कैंची से विलकुल वारीकी से काटें, ताकि अन्य वर्णों का समावेश न हो। फिर उस कटे अंश के अति महीन टुकड़े करें (जितना महीन हो सके), और थोड़े गीले गूड़ के साथ मिलाकर सात छोटी-छोटी गोलियां बना लें। गोलियों का आकार ऐसा हो कि बिना चबाये आसानी से निगला जा सके। गोलियां बन जाने पर कांसे की कटोरी में पीले वस्त्र का आसन देकर स्थापित कर, पंचोपचार पूजन करें। फिर वहीं बैठकर एक हजार मन्मथ (कामदेव) मंत्र का जप करें। यह सारा कार्य फाल्गुन पूर्णिमा (जिस रात होलिका दहन होता है) को करना सर्वाधिक लाभप्रद होगा। वैसे अन्य पूर्णिमा को भी किया जा सकता है, जिसमें भद्रा और अन्य अशुभ योगादि न हों। इस प्रकार पुनर्साधित "मयूरशिखाचन्द्रवटी" को रजोस्नान के बाद, पांचवें दिन से लागातार सात दिनों तक, प्रातः स्नान के बाद गोदुग्ध के अनुपान से (बिना चबाये,तोड़े) सेवन करे तो विभिन्न प्रकार के वन्ध्यत्व दोषों का निवारण होकर सन्तान सुख की प्राप्ति होती है।
Ø उक्त मयूरशिखाचन्द्र को जारित कर मधु के साथ थोड़ी मात्रा (सूई के नोक पर जितना आ सके) में कुछ दिनों तक सेवन कराने से समस्त वालारिष्ट का शमन होता है।
Ø उक्त प्रयोग को सामान्य स्थिति में भी बालकों के कल्याण (खास कर दन्तोद्भेद के समय की पीड़ा)के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
Ø बालकों के झाड़-फूंक में साधित मयूरपिच्छ विशेष कारगर है।

Ø जिन बालकों को बार-बार नजर-दोष प्रभावित करता है, उन्हें मयूरशिखाचन्द्र को ताबीज में भर कर गले में धारण कराने से चमत्कारी लाभ होता है।

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