Thursday, December 3, 2015

।।श्री सूक्त।।

।।श्री सूक्त।।
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो मऽआवह।।1
हे अग्निदेव, आप मेरे लिए उस लक्ष्मी देवी का आवाहन करें जिनका वर्ण स्वर्णकान्ति के समान है, जो स्वर्ण और रजत की मालाओं से अलंकृत हैं, जो परम सुंदरी दारिद्र्य का हरण करती हैं और जो चन्द्रमा के समान स्वर्णिम आभा से युक्त हैं.

तां म आवह जात-वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।2
हे जातवेदा अग्निदेव, आप मेरे लिए उन जगत-प्रसिद्ध वापस नहीं लौटने वाली (सदा साथ रहनेवाली) लक्ष्मी जी को बुलाएं जिनके आगमन से मैं स्वर्ण, गौ, अश्व,बंधू-बांधव, पुत्र-पौत्र को प्राप्त कर सकूँ.

अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।3
जिस देवी के आगे घोड़े और मध्य में रथ है, ऐसे रथ पर आरूढ़ गज-निनाद से प्रमुद्कारिणी देदीप्यमान लक्ष्मी देवी का मैं यहाँ आवाहन करता हूँ जिससे वे मुझ पर प्रसन्न हों.

कां सोऽस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।4
मुखारविंद पर मधुर स्मिति से जिनका स्वरुप अवर्णनीय है, जो स्वर्ण से आविष्ट, दयाभाव से आर्द्र देदीप्यमान हैं और जो स्वयं तृप्त होते हुए दूसरों के मनोरथ को पूरा करने वाली हैं कमल पर विराजमान कमल-सदृश उस लक्ष्मी देवी का मैं आवाहन करता हूँ.

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि।।5
चन्द्रमा के समान प्रभावती, अपनी यश-कीर्ति से देदीप्यमती, स्वर्गलोक में देवों द्वारा पूजिता, उदारहृदया, कमल-नेमि (कमल-चक्रिता/ पद्म-स्थिता) लक्ष्मी देवी, मैं आपका शरणागत हूँ. आपकी कृपा से मेरी दरिद्रता दूर हो.

आदित्यवर्णे तपसोधिsजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथबिल्वः।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु या अन्तरा याष्च बाह्या अलक्ष्मीः।।6
हे सूर्यकांतियुक्ता देवी, जिस प्रकार आपके तेज से सारी वनसम्पदाएँ उत्पन्न हुई हैं, जिस प्रकार आपके तेज से बिल्ववृक्ष और उसके फल उत्पन्न हुए हैं, उसी प्रकार आप अपने तेज से मेरे बाह्य और आभ्यंतर की दरिद्रता को विनष्ट कर दें.

उपैतु मां देवसखः कीर्तिष्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे।। 7
हे लक्ष्मी देवी, देवसखा अर्थात् महादेव के सखा कुबेर के समान मुझे मणि (संपत्ति) के साथ कीर्ति प्राप्त हो, मैं इस राष्ट्र में उत्पन्न हुआ हूं, मुझे कीर्ति और समृद्धि प्रदान करें.


क्षुत्पिपासामलां जयेष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वान् निर्णुद मे गृहात् ।। 8
क्षुधा और पिपासा (भूख-प्यास) रूपी मलिनता की वाहिका आपकी ज्येष्ठ बहन अलक्ष्मी को मैं (आपके प्रताप से) नष्ट करता हूँ. हे लक्ष्मी देवी ,आप मेरे घर से अनैश्वर्य अशुभता जैसे सभी विघ्नों को दूर करें.

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।।9
सुगन्धित द्रव्यों के अर्पण से प्रसन्न होने वाली, किसी से भी नहीं हारनेवाली, सर्वदा समृद्धि देने वाली (इच्छाओं की पुष्टि करनेवाली), समस्त जीवों की स्वामिनी लक्ष्मी देवी का मैं यहां आवाहन करता हूं.

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः॥10
हे लक्ष्मी देवी, आपकी कृपा से मेरी सभी मानसिक इच्छा की पूर्ति हो जाए, वचन सत्य हो जाय, पशुधन रूप-सौन्दर्य और अन्न को मैं प्राप्त करूं तथा मुझे संपत्ति और यश प्राप्त हो जाय.

कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥11
हे कर्दम ऋषि (लक्ष्मी-पुत्र), आप मुझ में निवास कीजिये और आपके सद्प्रयास से जो लक्ष्मी देवी आविर्भूत होकर आप-सा प्रकृष्ट पुत्र वाली माता हुई उस कमलमाला-धारिणी लक्ष्मी माता को मेरे कुल में निवास कराइए .

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥ 12
जिस प्रकार वरुणदेव स्निग्ध द्रव्यों को उत्पन्न करते है (जिस प्रकार जल से स्निग्धता आती है), उसी प्रकार, हे लक्ष्मीपुत्र चिक्लीत, आप मेरे घर में निवास करें और दिव्यगुणयुक्ता श्रेयमान माता लक्ष्मी को मेरे कुल में निवास कराकर इसे स्निग्ध कर दें.

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ 13
हे अग्निदेव, आप मेरे लिए कमल-पुष्करिणी की आर्द्रता से आर्द्र शरीर वाली, पुष्टिकारिणी, पीतवर्णा, कमल की माला धारण करने वाली, चन्द्रमा के समान स्वर्णिम आभा वाली लक्ष्मी देवी का आवाहन करें.

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ 14
हे अग्निदेव, आप मेरे लिए दयाभाव से आर्द्रचित्त, क्रियाशील करनेवाली, शासन-दंड-धारिणी (कोमलांगी), सुन्दर वर्णवाली, स्वर्णमाला-धारिणी सूर्य के समान स्वर्णिम आभामयी लक्ष्मी देवी का आवाहन करें.

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्या हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वन्विन्देयं पुरुषानहम् ।।15
हे अग्निदेव, आप मेरे लिए स्थिर (दूर न जानेवाली) लक्ष्मी देवी का आवाहन करें जिनकी कृपा से मुझे प्रचुर स्वर्ण-धन, गौ, घोड़े और संतान प्राप्त हों.
ll ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ll
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श्री सूक्त के पंद्रह ऋचाओं के बाद सोलवें ऋचा में इसका फल वर्णित है जिस से स्पष्ट है कि इस सूक्त से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.....
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥16

जो नित्य पवित्र होकर इस पंचदश ऋचा वाले सूक्त से भक्तिपूर्वक घी की आहुति देता है और इसका पाठ (जप) करता है उसकी श्री (लक्ष्मी) की कामना पूर्ण होती है.

Tuesday, September 15, 2015

अनुभूत प्रयोग

अनुभूत प्रयोग
1. सदा स्वस्थ बने रहने के लिये रात्रि को पानी किसी लोटे या गिलास में सुबह उठ कर पीने के लिये रख दें। उसे पी कर बर्तन को उल्टा रख दें तथा दिन में भी पानी पीने के बाद बर्तन (गिलास आदि) को उल्टा रखने से यकृत सम्बन्धी परेशानियां नहीं होती तथा व्यक्ति सदैव स्वस्थ बना रहता है।

2. हृदय विकार, रक्तचाप के लिए एकमुखी या सोलहमुखी रूद्राक्ष श्रेष्ठ होता है। इनके न मिलने पर ग्यारहमुखी, सातमुखी अथवा पांचमुखी रूद्राक्ष का उपयोग कर सकते हैं। इच्छित रूद्राक्ष को लेकर श्रावण माह में किसी प्रदोष व्रत के दिन, अथवा सोमवार के दिन, गंगाजल से स्नान करा कर शिवजी पर चढाएं, फिर सम्भव हो तो रूद्राभिषेक करें या शिवजी पर “ॐ नम: शिवाय´´ बोलते हुए दूध से अभिषेक कराएं। इस प्रकार अभिमंत्रित रूद्राक्ष को काले डोरे में डाल कर गले में पहनें।

3. जिन लोगों को 1-2 बार दिल का दौरा पहले भी पड़ चुका हो वे उपरोक्त प्रयोग संख्या 2 करें तथा निम्न प्रयोग भी करें :- एक पाचंमुखी रूद्राक्ष, एक लाल रंग का हकीक, 7 साबुत (डंठल सहित) लाल मिर्च को, आधा गज लाल कपड़े में रख कर व्यक्ति के ऊपर से 21 बार उसार कर इसे किसी नदी या बहते पानी में प्रवाहित कर दें।

4. किसी भी सोमवार से यह प्रयोग करें। बाजार से कपास के थोड़े से फूल खरीद लें। रविवार शाम 5 फूल, आधा कप पानी में साफ कर के भिगो दें। सोमवार को प्रात: उठ कर फूल को निकाल कर फेंक दें तथा बचे हुए पानी को पी जाएं। जिस पात्र में पानी पीएं, उसे उल्टा कर के रख दें। कुछ ही दिनों में आश्चर्यजनक स्वास्थ्य लाभ अनुभव करेंगे।

5. घर में नित्य घी का दीपक जलाना चाहिए। दीपक जलाते समय लौ पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर हो या दीपक के मध्य में (फूलदार बाती) बाती लगाना शुभ फल देने वाला है।

6. रात्रि के समय शयन कक्ष में कपूर जलाने से बीमारियां, दु:स्वपन नहीं आते, पितृ दोष का नाश होता है एवं घर में शांति बनी रहती है।

7. पूर्णिमा के दिन चांदनी में खीर बनाएं। ठंडी होने पर चन्द्रमा और अपने पितरों को भोग लगाएं। कुछ खीर काले कुत्तों को दे दें। वर्ष भर पूर्णिमा पर ऐसा करते रहने से गृह क्लेश, बीमारी तथा व्यापार हानि से मुक्ति मिलती है।

8. रोग मुक्ति के लिए प्रतिदिन अपने भोजन का चौथाई हिस्सा गाय को तथा चौथाई हिस्सा कुत्ते को खिलाएं।

9. घर में कोई बीमार हो जाए तो उस रोगी को शहद में चन्दन मिला कर चटाएं।

10. पुत्र बीमार हो तो कन्याओं को हलवा खिलाएं। पीपल के पेड़ की लकड़ी सिरहाने रखें।

11. पत्नी बीमार हो तो गोदान करें। जिस घर में स्त्रीवर्ग को निरन्तर स्वास्थ्य की पीड़ाएँ रहती हो, उस घर में तुलसी का पौधा लगाकर उसकी श्रद्धापूर्वक देखशल करने से रोग पीड़ाएँ समाप्त होती है।

12. मंदिर में गुप्त दान करें।

13. रविवार के दिन बूंदी के सवा किलो लड्डू मंदिर में प्रसाद के रूप में बांटे।

14. सदैव पूर्व या दक्षिण दिषा की ओर सिर रख कर ही सोना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर सिर कर के सोने वाले व्यक्ति में चुम्बकीय बल रेखाएं पैर से सिर की ओर जाती हैं, जो अधिक से अधिक रक्त खींच कर सिर की ओर लायेंगी, जिससे व्यक्ति विभिन्न रोंगो से मुक्त रहता है और अच्छी निद्रा प्राप्त करता है।

15. अगर परिवार में कोई परिवार में कोई व्यक्ति बीमार है तथा लगातार औषधि सेवन के पश्चात् भी स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है, तो किसी भी रविवार से आरम्भ करके लगातार 3 दिन तक गेहूं के आटे का पेड़ा तथा एक लोटा पानी व्यक्ति के सिर के ऊपर से उबार कर जल को पौधे में डाल दें तथा पेड़ा गाय को खिला दें। अवश्य ही इन 3 दिनों के अन्दर व्यक्ति स्वस्थ महसूस करने लगेगा। अगर टोटके की अवधि में रोगी ठीक हो जाता है, तो भी प्रयोग को पूरा करना है, बीच में रोकना नहीं चाहिए।

16. अमावस्या को प्रात: मेंहदी का दीपक पानी मिला कर बनाएं। तेल का चौमुंहा दीपक बना कर 7 उड़द के दाने, कुछ सिन्दूर, 2 बूंद दही डाल कर 1 नींबू की दो फांकें शिवजी या भैरों जी के चित्र का पूजन कर, जला दें। महामृत्युजंय मंत्र की एक माला या बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ कर रोग-शोक दूर करने की भगवान से प्रार्थना कर, घर के दक्षिण की ओर दूर सूखे कुएं में नींबू सहित डाल दें। पीछे मुड़कर नहीं देखें। उस दिन एक ब्राह्मण -ब्राह्मणी को भोजन करा कर वस्त्रादि का दान भी कर दें। कुछ दिन तक पक्षियों, पशुओं और रोगियों की सेवा तथा दान-पुण्य भी करते रहें। इससे घर की बीमारी, भूत बाधा, मानसिक अशांति निश्चय ही दूर होती है।

17. किसी पुरानी मूर्ति के ऊपर घास उगी हो तो शनिवार को मूर्ति का पूजन करके, प्रात: उसे घर ले आएं। उसे छाया में सुखा लें। जिस कमरे में रोगी सोता हो, उसमें इस घास में कुछ धूप मिला कर किसी भगवान के चित्र के आगे अग्नि पर सांय, धूप की तरह जलाएं और मन्त्र विधि से ´´ ॐ माधवाय नम:। ॐ अनंताय नम:। ॐ अच्युताय नम:।´´ मन्त्र की एक माला का जाप करें। कुछ दिन में रोगी स्वस्थ हो जायेगा। दान-धर्म और दवा उपयोग अवश्य करें। इससे दवा का प्रभाव बढ़ जायेगा।

18. अगर बीमार व्यक्ति ज्यादा गम्भीर हो, तो जौ का 1.25 पाव (सवा पाव) आटा लें। उसमें साबुत काले तिल मिला कर रोटी बनाएं। अच्छी तरह सेंके, जिससे वे कच्ची न रहें। फिर उस पर थोड़ा सा तिल्ली का तेल और गुड़ डाल कर पेड़ा बनाएं और एक तरफ लगा दें। फिर उस रोटी को बीमार व्यक्ति के ऊपर से 7 बार वार कर किसी भैंसे को खिला दें। पीछे मुड़ कर न देखें और न कोई आवाज लगाए। भैंसा कहाँ मिलेगा, इसका पता पहले ही मालूम कर के रखें। भैंस को रोटी नहीं खिलानी है, केवल भैंसे को ही श्रेष्ठ रहती है। शनि और मंगलवार को ही यह कार्य करें।

19. पीपल के वृक्ष को प्रात: 12 बजे के पहले, जल में थोड़ा दूध मिला कर सींचें और शाम को तेल का दीपक और अगरबत्ती जलाएं। ऐसा किसी भी वार से शुरू करके 7 दिन तक करें। बीमार व्यक्ति को आराम मिलना प्रारम्भ हो जायेगा।

20. किसी कब्र या दरगाह पर सूर्यास्त के पश्चात् तेल का दीपक जलाएं। अगरबत्ती जलाएं और बताशे रखें, फिर वापस मुड़ कर न देखें। बीमार व्यक्ति शीघ्र अच्छा हो जायेगा।

21. किसी तालाब, कूप या समुद्र में जहां मछलियाँ हों, उनको शुक्रवार से शुक्रवार तक आटे की गोलियां, शक्कर मिला कर, चुगावें। प्रतिदिन लगभग 125 ग्राम गोलियां होनी चाहिए। रोगी ठीक होता चला जायेगा।

22. शुक्रवार रात को मुठ्ठी भर काले साबुत चने भिगोयें। शनिवार की शाम काले कपड़े में उन्हें बांधे तथा एक कील और एक काले कोयले का टुकड़ा रखें। इस पोटली को किसी तालाब या कुएं में फेंक दें। फेंकने से पहले रोगी के ऊपर से 7 बार वार दें। ऐसा 3 शनिवार करें। बीमार व्यक्ति शीघ्र अच्छा हो जायेगा।

23. सवा सेर (1.25 सेर) गुलगुले बाजार से खरीदें। उनको रोगी पर से 7 बार वार कर चीलों को खिलाएं। अगर चीलें सारे गुलगुले, या आधे से ज्यादा खा लें तो रोगी ठीक हो जायेगा। यह कार्य शनि या मंगलवार को ही शाम को 4 और 6 के मध्य में करें। गुलगुले ले जाने वाले व्यक्ति को कोई टोके नहीं और न ही वह पीछे मुड़ कर देखे।

24. यदि लगे कि शरीर में कष्ट समाप्त नहीं हो रहा है, तो थोड़ा सा गंगाजल नहाने वाली बाल्टी में डाल कर नहाएं।

25. प्रतिदिन या शनिवार को खेजड़ी की पूजा कर उसे सींचने से रोगी को दवा लगनी शुरू हो जाती है और उसे धीरे-धीरे आराम मिलना प्रारम्भ हो जायेगा। यदि प्रतिदिन सींचें तो 1 माह तक और केवल शनिवार को सींचें तो 7 शनिवार तक यह कार्य करें। खेजड़ी के नीचे गूगल का धूप और तेल का दीपक जलाएं।

26. हर मंगल और शनिवार को रोगी के ऊपर से इमरती को 7 बार वार कर कुत्तों को खिलाने से धीरे-धीरे आराम मिलता है। यह कार्य कम से कम 7 सप्ताह करना चाहिये। बीच में रूकावट न हो, अन्यथा वापस शुरू करना होगा।

27. साबुत मसूर, काले उड़द, मूंग और ज्वार चारों बराबर-बराबर ले कर साफ कर के मिला दें। कुल वजन 1 किलो हो। इसको रोगी के ऊपर से 7 बार वार कर उनको एक साथ पकाएं। जब चारों अनाज पूरी तरह पक जाएं, तब उसमें तेल-गुड़ मिला कर, किसी मिट्टी के दीये में डाल कर दोपहर को, किसी चौराहे पर रख दें। उसके साथ मिट्टी का दीया तेल से भर कर जलाएं, अगरबत्ती जलाएं। फिर पानी से उसके चारों ओर घेरा बना दें। पीछे मुड़ कर न देखें। घर आकर पांव धो लें। रोगी ठीक होना शुरू हो जायेगा।

28. गाय के गोबर का कण्डा और जली हुई लकड़ी की राख को पानी में गूंद कर एक गोला बनाएं। इसमें एक कील तथा एक सिक्का भी खोंस दें। इसके ऊपर रोली और काजल से 7 निशान लगाएं। इस गोले को एक उपले पर रख कर रोगी के ऊपर से 3 बार उतार कर सुर्यास्त के समय मौन रह कर चौराहे पर रखें। पीछे मुड़ कर न देखें।

29. शनिवार के दिन दोपहर को 2.25 (सवा दो) किलो बाजरे का दलिया पकाएं और उसमें थोड़ा सा गुड़ मिला कर एक मिट्टी की हांडी में रखें। सूर्यास्त के समय उस हांडी को रोगी के शरीर पर बायें से दांये 7 बार फिराएं और चौराहे पर मौन रह कर रख आएं। आते-जाते समय पीछे मुड़ कर न देखें और न ही किसी से बातें करें।

30. धान कूटने वाला मूसल और झाडू रोगी के ऊपर से उतार कर उसके सिरहाने रखें।

31. सरसों के तेल को गरम कर इसमें एक चमड़े का टुकड़ा डालें, पुन: गर्म कर इसमें नींबू, फिटकरी, कील और काली कांच की चूड़ी डाल कर मिट्टी के बर्तन में रख कर, रोगी के सिर पर फिराएं। इस बर्तन को जंगल में एकांत में गाड़ दें।.


Tuesday, September 8, 2015

दीपावली पर किए जाने वाले अद्भुत प्रयोग


शत्रु की पीड़ा से बचने हेतु:
दीपावली की रात को पीपल के पत्तों पर, कर्पूर के काजल से बनी स्याही से उस शत्रु का नाम लिखकर निर्जन स्थान पर भूमि खोदकर दबा दें और पीछे मुड़कर न देखें, शत्रु से छुटकारा मिल जायेगा।

मुकदमे में जीत हासिल करने के लिए:
दीपावली के दिन सवा पांच रत्ती का आनिक्स, चांदी में जड़वाकर हनुमान बाण का पाठ करके, कनिष्ठिका अंगुली में और तांबे की अंगूठी अनामिका अंगुली में धारण करने से मुकदमे में जीत हासिल होती है।

जीवन में सफलता हेतु:
यदि दीपावली की रात को गोमती चक्र को लकड़ी की डिब्बी में पीले सिंदूर के साथ रख दिया जाए, तो व्यक्ति को जीवन में सफलता मिलने लगती है।

 धन वापस लेने हेतु:
यदि कोई व्यक्ति धन नहीं लौटा रहा हो, तो कर्पूर के सूखे काजल से दीपावली की शाम को 6 और 9 बजे के बीच भोज-पत्र पर उस आदमी का नाम लिखकर किसी भारी वस्तु के नीचे दबाकर रखना चाहिए। इस टोटके को करने से वह आदमी आपका पैसा लौटा देगा।

आलस्य दूर करने या काम में मन लगाने के लिए:
कई बार आलस्य के कारण काम में मन नहीं लगता, तो निम्नलिखित उपाय करें - दीपावली वाले दिन लाल रंग का मूंगा लेकर आएं। उसको चांदी की अंगूठी में बनवाकर दोपहर 12 से 02 बजे के बीच हनुमान जी की मूर्ति के चरणों में लगाकर ‘श्री राम दूताय हनुमान नमः’ कहकर उसे पहन लें।

कर्जा उतारने के लिए: दीपावली वाले दिन एक सफेद रुमाल लें। पांच गुलाब के फूल, एक चांदी का पत्तर, थोड़े से चावल तथा गुड़ लेकर मंदिर में जाएं। मंदिर में जाकर इन चीजों को हाथ में लेकर 21 बार गायत्री मंत्र का पाठ करें तथा रुमाल को बिछाकर रखें। फिर बारी-बारी से इन चीजों को उसमें डालते रहें। उसके बाद इनको इकट्ठा करके कहें कि मेरी परेशानियां दूर हो जाएं तथा मेरा कर्जा उतर जाये। दूसरे दिन इन सबको जल में प्रवाहित कर दें। ऐसा करने से कर्जा जल्दी उतर जायेगा तथा परेशानियां भी दूर हो जायेंगी।

संतान प्राप्ति के लिए: दीपावली के दिन एक चांदी की बांसुरी कृष्ण मंदिर में भगवान कृष्ण को चढ़ाएं। उस दिन से लगातार 43 दिन भगवान कृष्ण के मंत्र का जाप करें। गाय को चारा डालें और संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें। निश्चय ही ईश्वर की कृपा से संतान की प्राप्ति होगी।

तबादले के लिए: दीपावली वाले दिन सुबह उठकर, नहाकर, शुद्ध वस्त्र पहनकर लाल मिर्च लेकर सूरज की तरफ फेंकें तथा कहें कि मेरी जल्दी से दूसरी जगह तबादला हो जाए। ऐसा करने से 43 दिन के अंदर-अंदर आपकी बदली हो जायेगी।

उत्तम कार्यक्षेत्र की प्राप्ति हेतु उपाय: यदि आप उच्च शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् भी अपनी क्षमता के अनुसार श्रेष्ठ क्षेत्र प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं, तो दीपावली के दिन उत्तम कार्यक्षेत्र की प्राप्ति के लिए यह उपाय अवश्य करें।
आवश्यक सामग्री: पारद लक्ष्मी, स्फटिक श्री यंत्र, छः मुखी रुद्राक्ष तथा लाल चंदन की माला।
 प्रयोग विधि: दीपावली के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर, घर के किसी एकांत कोने में एक चौकी अथवा पाट्टे पर लक्ष्मीजी की प्रतिमा तथा स्फटिक से निर्मित श्रीयंत्र को लाल कपड़े पर स्थापित करें। तत्पश्चात् उनका पूजन् करें। पूजन के पश्चात् लाल चंदन की माला से निम्नलिखित मंत्र का अधिकाधिक जाप करें।

मंत्र:-   ऊँ पद्मावती पद्मनेत्रे लक्ष्मीदायिनी सर्वकार्य सिद्धि करि करि ऊँ ह्रीं श्रीं पद्मावल्ये नमः।।

Monday, September 7, 2015

दिवाली के समय बताई गयी कुछ बातें

दिवाली के समय बताई गयी कुछ बातें
1. पूजा के स्थान पर मोर-पंख रखने से लक्ष्मी-प्राप्ति में मदद मिलती है.

2. तुलसी के पौधे के आगे शाम को दिया जलाने से लक्ष्मी वृद्दि में मदद मिलती है; लक्ष्मीजी को कभी तुलसीजी नहीं चढाई जाती, उनको कमल चढाया जाता है |

3. आवले के उबटन से स्नान करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है

4. मिट्टी के कोरे दीयों में कभी भी तेल घी नहीं डालना चाहिए। दीये 6 घंटे पानी में भिगोकर रखें,फिर इस्तेमाल करें। नासमझ लोग कोरे दीये में घी डालकर बिगाड़ करते हैं।

5. दीपावली के दिन लौंग और इलाइची को जलाकर राख कर दें; उस से फिर तिलक करें; लक्ष्मी-प्राप्ति में मदद मिलती है |

6. दीवाली के दिनों मे घर के मुख्य दरवाजे पर हल्दी और चावल की पावडर से ओमकार और स्वास्तिक बनाये। घर मे निरोगता और प्रसन्नता रहेगी|

7. दीपावली की संध्या को तुलसी जी के निकट दिया जलायें, लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने में मदद मिलती है;कार्तिक मास में तुलसीजी के आगे दिया जलाना पुण्य-दाई है, और प्रातः-काल के स्नान की भी बड़ी भारी महिमा है |

8. दीपावली, जन्म-दिवस, और नूतन वर्ष के दिन,जप कर के सत्संग सुनना चाहिए |

9. दीपावली की रात का जप हज़ार गुना फल-दाई होता है; 
४ महा-रात्रियाँ हैं - 
1. दिवाली, 
2. शिवरात्रि,
3. होली, 
4. जन्माष्टमी - 
यह सिध्ध रात्रियाँ हैं, इन रात्रियों का अधिक से अधिक जप कर के लाभ लेना चाहिए |

10. दीपावली के अगले दिन, नूतन वर्ष होता है,उस दिन, सुबह उठ कर थोडी देर चुप बैठ जाएँ; फिर, अपने दोनों हाथों को देख कर यह प्रार्थना करें:
कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर-मध्ये च सरस्वती,
कर-मूले तू गोविन्दः, प्रभाते कर दर्शनं ||
अर्थात, मेरे हाथों के अग्र भाग में लक्ष्मी जी का वास है, मेरे हाथों के मध्य भाग में सरस्वती जी हैं; मेरे हाथों के मूल में गोविन्द हैं, इस भाव से अपने दोनों हाथों के दर्शन करता हूँ...

फिर, जो नथुना चलता हो, वही पैर धरती पर पहले रखें; दाँया चलता हो, तो ३ कदम आगे बढायें, दांए पैर से ही | बाँया चलता हो, तो ४ कदम आगे बढायें, बाँए पैर से ही |

11. नूतन वर्ष के दिन जो व्यक्ति हर्ष और आनंद से बिताता है, उसका पूरा वर्ष हर्ष और आनंद से जाता है।

12. वर्ष के प्रथम दिन आसोपाल (अशोक के पत्ते )के और नीम के पत्तों का तोरण लगायें और वहां से गुजरें तो वर्षभर खुशहाली और निरोगता रहेगी


1. दीपावली के दिन रात भर घी का दिया जले सूर्योदय तक, तो बड़ा शुभ माना जाता है |

2. दिवाली की रात को चाँदी की छोटी कटोरी या दिए में कपूर जलने से दैहिक दैविक और भौतिक परेशानी/कष्टों से मुक्ति होती है|

3. हर अमावस्या को (और दिवाली को भी) पीपल के पेड़ के नीचे दिया जलाने से पितृ और देवता प्रसन्न होते हैं, और अच्छी आत्माएं घर में जनम लेती हैं |

4. दीपावली की शाम को अशोक वृक्ष के नीचे घी का दिया जलायें, तो बहुत शुभ माना जाता है |

5. दिवाली की रात गणेशजी को लक्ष्मी जी के बाएं रख कर पूजा की जाये तो कष्ट दूर होते हैं |

6. दिवाली के दिनों में अपने घर के बाहर सरसों के तेल का दिया जला देना, इससे गृहलक्ष्मी बढ़ती हैं ।

7. दिवाली की रात प्रसन्नतापूर्वक सोना चाहिये ।

8. थोड़ी खीर कटोरी में डाल के और नारियल लेकर के घूमना और मन में "लक्ष्मी- नारायण" जप करना और खीर ऐसी जगह रखना जहाँ किसी का पैर ना पड़े और गायें, कौए आदि खा जाएँ और नारियल अपने घर के मुख्य द्वार पर फोड़ देना और इसकी प्रसादी बाँटना । इससे घर में आनंद और सुख -शांति रहेगी ।

9. दीपावली की रात मुख्य दरवाजे के बाहर दोनों तरफ १-१ दिया गेहूँ के ढेर पे जलाएं और कोशिश करें की दिया पूरी रात जले| आपके घर सुख समृद्धि की वृद्धि होगी|

10. दिवाली के दिन अगर घर के लोग मिलकर 5-5 आहुति डालते हैं तो घर में सुख सम्पदा रहेगी । लक्ष्मी का निवास स्थाई रहेगा ।

11. दिवाली के दिनों में चौमुखी दिया जलाकर चौराहे पर रख दिया जाए, चारों तरफ, वो शुभ माना जाता है ।

12. नूतन वर्ष के दिन (दीपावली के अगले दिन)गाय के खुर की मिट्टी से, अथवा तुलसीजी की मिट्टी से तिलक करें, सुख-शान्ति में बरकत होगी|


दिवाली के दिन स्फटिक की माला से इन मन्त्रों के जप करने से लक्ष्मी आती हैं -
ॐ महालक्ष्मऐ नमः , ॐ विष्णुप्रियाऐ नमः ,

भूत प्रेत से रक्षा -
दिवाली के दिन सरसों के तेल का या शुध्द घी का दिया जलाकर काजल बना ले…ये काजल लगाने से भूत प्रेत पिशाच, डाकिनी से रक्षा होती है…और बुरी नजर से भी रक्षा होती है।–


काली चौदस को सरसों के तेल/घी का दिया जलाकर काजल बनाकर लगाने से नजर नहीं लगती, नेत्र ज्योति बढ़ती है और भूत-बाधा भाग जाती है।

Wednesday, August 5, 2015

॥ श्रीनील सरस्वतीस्तोत्रम् ॥

श्रीनील सरस्वतीस्तोत्रम्

     श्री गणेशाय नमः

घोररूपे महारावे सर्वशत्रु भयङ्करी
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम् १॥

सुरासुरार्चिते देवि सिद्ध गन्धर्व सेविते
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम् २॥

जटाजूट समायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणी
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम् ३॥

सौम्यक्रोधधरे रूपे चण्डरूपे नमोऽस्तु ते
सृष्टिरूपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम् ४॥

जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला
मूढतां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम् ५॥

ह्रूं ह्रूङ्कारमये देवि बलिहोमप्रिये नमः
उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम् ६॥

बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देवि मे
मूढत्वं हरेर्देवि त्राहि मां शरणागतम् ७॥

इन्द्रादिविलसन्देववन्दिते करुणामयी
तारे तारधिनाथास्थे त्राहि मां शरणागतम् ८॥

     अथ फलश्रुतिः

अष्टम्यां चतुर्दश्यां नवम्यां पठेन्नरः
षण्मासैः सिद्धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा १॥

मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम्
विध्यार्थी लभते विद्यां तर्कव्याकरणादिकाम् २॥

इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयान्वितः
तस्य शत्रुः क्षयं याति महाप्रज्ञा प्रजायते ३॥

पीडायां यापि सङ्ग्रामे जाड्ये दाने तथा भये
इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य संशयः
इति प्रणम्य स्तुत्वा योनिमुद्रां प्रदर्शयेत्
  इति श्री नील सरस्वती स्तोत्रं सम्पूर्णम्


Nilasaraswati is a form of Goddess Tara, the second deity in the list of famous Dashamahavidya. Her iconography is close to Goddess Kali as opposed to the same of Goddess Saraswati in the Vedas. Other popular forms of Godess Tara are Tarini and Ugra-Tara.

Devi Nilasaraswati is the Ishta-devi of sage Vashista. It is well known in the society of tantra practitioners that she puts her worshipper to extreme challenges before really granting siddhi. For example, sage Vashista himself was plucked off several times in this sadhana despite performing extreme austerities for many many years. As a result the sage did put a curse on Tara-mantra. The success of Brahmananda Giri (of Digamvaritala Bangladesh, the Paratpara guru of Krishnananda Agamvagisha) in this sadhana is a story worth knowing. In the recent past, she was worshipped by Vamdeva or Bamakhyapa (the crazy Bama), the Bhairava of Tarapith on the same 'pancha-mundi-asan' (the seat of five skulls) below the Shalmali tree (known as Mundamalinitala) where sage Vashista is supposed to have performed his sadhana.

Amongst the several boons Nilasaraswati grants are poesy and eloquence. Moreover, she grants 'vaksiddhi' for free or resides in the tounge of the worshipper, and, this is the precise reason that explains her name.

Brihannila Tantra is a source to know more of her.