Tuesday, April 5, 2016

षट्कर्म :-

भारतीय वेद शास्त्रों में अनेक प्रकार के अनुष्ठान आदि बताए गए हैं, किसी को अपनी ओर आकर्षित करने से लेकर उसे स्तंभित करने या उसे अपने पक्ष में कर लेने तक। सभी मंत्र-तंत्र-यंत्र में षट्कर्मों की साधना बताई गई है।
1:- शरीर व मन के रोगों की शांति, क्लेश की शांति, उपद्रवों की समाप्ति, ग्रह-बाधा के कुप्रभावों की समाप्ति, आपदा  व कष्ट निवारण, पाप विमोचन, ऋद्धि, सिद्धि या सुख-शांति के उपाय व दरिद्रता निवारण इत्यादि की साधना को शांति कर्म कहते हैं।
2:- किसी को अपनी तरफ मोहित कर लेना मोहन कर्म है। किसी को आकृष्ट कर अनुकूल बनाकर अपना काम करवा लेना आकर्षण कहा गया है। किसी को शुभ या अशुभ कार्य करने के लिए प्रयोजन पूर्वक वशीभूत कर देना वशीकरण है।
3:- किसी की चाल-ढाल को बंद कर देना। सजीव या निर्जीव को जहां का तहां रोक देना, बंधन में डाल देना, निष्क्रिय या स्थिर कर देना, शत्रु के अस्त्र-शस्त्र को रोक देना, अग्नि के तेज को रोक देना, विरोधी की जीभ, मुख आदि को रोक देना इत्यादि स्तम्भन कर्म कहलाता है।
4:- किसी के मन में शंका पैदा कर भयभीत या भ्रमित बनाकर भगा देना या स्थानांतरित कर देना उच्चाटन होता है। साध्य व्यक्ति मारा-मारा फिरता है। पागल की तरह हो जाता है। घर-स्थान छोड़कर भाग जाता है।
5:- किसी व्यक्ति को किसी व्यक्ति से अलग करना, किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच कलह-क्लेश उत्पन्न करवाकर एक दूसरे का शत्रु बना देना विद्वेषण कर्म कहलाता है।
6:- किसी का प्राण हरण कर उसका जीवन समाप्त कर देना या करवा देना। मरण तुल्य कष्ट देना मारण कर्म कहलाता है।
1. शांति कर्म:
2. मोहन, आकर्षण, वशीकरण:
3. स्तंभन कर्म:
4. उच्चाटन कर्म:
5. विद्वेषण कर्म:
6. मारण कर्म:
प्रथम तीन कर्म समान्यतः अपने कष्ट निवारण हेतु किए जाते हैं।
इनमें दूसरे के प्रति कोई विद्वेषण की भावना नहीं होती। लेकिन आखिरी तीन कर्म विद्वेषण की भावना से ही किए जाते हैं अतः उनका प्रयोग सर्वदा वर्जित ही है। उपरोक्त सभी साधनाएं अनुष्ठान रूप में किसी ब्राह्मण द्वारा कराई जानी चाहिए।
इन प्रयोगों में आवश्यकता है कि अनुष्ठान करने वाला ब्राह्मण सदाचारी रहे।
जातक के प्रति उसकी सद्भावना हो।
सभी साधनाएं निश्चित मात्रा में (प्रायः सवा लाख) मंत्र जप द्वारा उनके यंत्रों को प्रतिष्ठित कर की जाती है। तदुपरांत हवन, मार्जन व तर्पण कर अनुष्ठान पूर्ण किया जाता है।
प्रतिष्ठित यंत्र को कार्य पूर्ण होने तक विशेष स्थान पर स्थापित किया जाता है।


कार्य सिद्ध होने के बाद यंत्र को विसर्जित कर दिया जाता है।

तन्त्रोक्त माला संस्कार / प्राण-प्रतिष्ठा विधि


मंत्र जप
अनुष्ठान-साधना-पूजा में जप माला की आवश्यकता होती हैबहुत कम ही ऐसी साधनाये है जिसमेमाला का जरूरत होमाला बाजार से सीधे खरीदकर जप नहीं किया जा सकताइस तरह की माला पर जप बहुत प्रभावी नहीं होताइसलिये माला प्राण-प्रतिष्ठा विधि-विधान अत्यंत आवश्यक है| सभी की ऐसी इच्छा रहती है की मेरे पास दुर्लभ माला रहे जिससे मेरी हरकामना पूर्ण होपरंतु आजकल मार्केट मे ऐसा माला नहीं मिलता| इसके लिए एक निश्चित प्रक्रिया के अनुसार माल की प्राण प्रतिष्ठा और उसमे चैतन्यता की आवश्यकता होती है | अगर पत्थर मे जान डालकर उनका पूजन हो सकता है तो फिर माला का हर मनका भी जीवित किया जा सकता है | इसके लिए तंत्रानुसार निम्न प्रक्रिया अपनाई जा सकती हैयद्यपि भिन्न लोग भिन्न प्रक्रिया भी अपना सकते हैसाथ ही कई प्रक्रियाएं इस सम्बन्ध में उपयोग में आती है |
सर्वप्रथम स्नान आदि से शुद्ध हो कर अपने पूजा गृह में पूर्व या उत्तर की ओर मुह कर आसन पर बैठ जाए|
 अब सर्व प्रथम आचमनपवित्रीकरण करने के बाद गणेश -गुरु तथा अपने इष्ट देव/ देवी का पूजन सम्पन्न कर ले| …
मुख शोधन करे:
क्रीं क्रीं क्रीं क्लीं क्लीं क्लीं
इस मंत्र का १० बार जाप करने से मुख शोधन होगा
स्व-गुरु पूजन:-
श्रीगुरुनाथ श्री पादुकां पुजयामी परमगुरु श्री पादुकां पुजयामी परात्परगुरु श्री पादुकां पुजयामी परमेष्टिगुरुनाथ श्री पादुकां पुजयामी
गुरुमंत्र का कम से कम एक माला जाप करे और गुरुजी से सफलता हेतु प्रार्थना करे….
निम्न मंत्र बोलकर गुरुचरनो मे भक्ति-भाव से पुष्प समर्पित कीजिये
अभीष्ट सिद्धिम मे देही शरनागतवस्तले। भक्त्या समर्पये तुभ्यं गुरुपंक्तिप्रपूजनम॥
तत्पश्चात पीपल के 09 पत्तो को भूमि पर अष्टदल कमल की भाती बिछा ले ! एक पत्ता मध्य में तथा शेष आठ पत्ते आठ दिशाओ में रखने से अष्टदल कमल बनेगा ! इन पत्तो के ऊपर आप माला को रख दे ! अब अपने समक्ष पंचगव्य तैयार कर के रख ले किसी पात्र में और उससे माला को प्रक्षालित ( धोये ) करे ! गाय से उत्पन्न दूध , दही , घी , गोमूत्र , गोबर इन पांच वस्तुओं को मिलाने से पंचगव्य बनता है !
पंचगव्य से माला को स्नान करना है
स्नान करते हुए अं आं इत्यादि सं हं पर्यन्त समस्त स्वर -व्यंजन का उच्चारण करे ! –
अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं !!
यह उच्चारण करते हुए माला को पंचगव्य से धोले ध्यान रखे इन समस्त स्वर का अनुनासिक उच्चारण होगा !इसके बाद माला को जल से धो ले
सद्यो जातं प्रद्यामि सद्यो जाताय वै नमो नमः
भवे भवे नाति भवे भवस्य मां भवोद्भवाय नमः !!
अब माला को साफ़ वस्त्र से पोछे और निम्न मंत्र बोलते हुए माला के प्रत्येक मनके पर चन्दन- कुमकुम आदि का तिलक करे
वामदेवाय नमः जयेष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कल विकरणाय नमो बलविकरणाय नमः !
बलाय नमो बल प्रमथनाय नमः सर्वभूत दमनाय नमो मनोनमनाय नमः !!
अब धूप जला कर माला को धूपित करे और मंत्र बोले
अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्य: सर्वेभ्य: सर्व शर्वेभया नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्य:
अब माला को अपने हाथ में लेकर दाए हाथ से ढक ले और निम्न मंत्र का १०८ बार जप कर उसको अभिमंत्रित करे
ईशानः सर्व विद्यानमीश्वर सर्वभूतानाम ब्रह्माधिपति ब्रह्मणो अधिपति ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदा शिवोम !!
अब साधक माला की प्राणप्रतिष्ठा हेतु अपने दाय हाथ में जल लेकर विनियोग करे
अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा विष्णु रुद्रा ऋषय: ऋग्यजु:सामानि छन्दांसि प्राणशक्तिदेवता आं बीजं ह्रीं शक्ति क्रों कीलकम अस्मिन माले प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः !!
अब माला को बाएं हाथ में लेकर दायें हाथ से ढक ले और निम्न मंत्र बोलते हुए ऐसी भावना करे कि यह माला पूर्ण चैतन्य शक्ति संपन्न हो रही है !
आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों क्षं सं सः ह्रीं आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम प्राणा इह प्राणाः ! आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों क्षं सं हं सः ह्रीं आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम जीव इह स्थितः ! आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों क्षं सं हं सः ह्रीं आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम सर्वेन्द्रयाणी वाङ् मनसत्वक चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण प्राणा इहागत्य इहैव सुखं तिष्ठन्तु स्वाहा !
मनो जूतिजुर्षतामाज्यस्य बृहस्पतिरयज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु विश्वे देवा सइह मादयन्ताम् प्रतिष्ठ !!
२४ बार गायत्री मंत्र बोलकर माला पर जल चढ़ाये, जिससे माला का शुद्धिकरण हो जाये और मंत्र जाप मे किसी भी प्रकार का दोष नहीं लगे. .माला का गन्ध अक्षत और पुष्प से पूजन करके प्रार्थना करे
माले माले महामाले, सर्वशक्तिस्वरूपिणी चतुर्वर्गस्त्वयिन्यस्तस्तस्मात्वं सिद्धिदा भव॥
माला को चैतन्य करने के लिये चेतना बीज मंत्रोसे माला के हर मणि को कुंकुम का बिंदी लगाये

चेतना बीज मंत्र:-
 “क्लीं श्रीं ह्रीं फट
अब माला का स्तुति करते हुये माला को दाहिने हाथ से ग्रहण करे
अविघ्नंकुरु माले त्वं जपकाले सदा मम। त्वं माले सर्वमन्त्रानामभीष्टसिद्धिकरी भव
आप जिस प्रकार का माला चाहते है जैसे गुरुमंत्र जाप माला, दशमहाविद्या, महामृत्युंजयनवग्रह माला, तो इस के लिये आप संबन्धित देवी/ देवता काआवाहन माला मे करे या इष्ट से प्रार्थना करे के उनके प्रसन्नता प्राप्त करने हेतुअमुक मंत्र जाप हेतु माला मे अमुक शक्ति की स्थापना होऔर अपने इष्ट का आज्ञा चक्र मे ध्यान करे
कुल्लुका मंत्र का करमाला (उंगली से) से शिर पर १० बार जाप करे
क्रीं हुं स्त्रीं ह्रीं फट
अब माला को हाथ मे लेकर निम्न मंत्र का आवश्यक संख्या मे जाप प्रारम्भ करे
तान्त्रोक्त माला मंत्र:-
ऐं श्रीं सर्व माला मणि माला सिद्धिप्रदायत्री शक्तिरूपीन्यै श्रीं ऐं नम:
मंत्र जाप के बाद माला को शिर पर रखे और प्रार्थना करे
माले त्वं सर्वदेवानां प्रीतिदा शुभदा भव
शुभं कुरुष्व मे देवी यशोवीर्य ददस्व मे
माला को शिर से उतारकर पुष्प समर्पित कर दे॰ सदगुरुजी भगवान को सर्व विधि-विधान हाथ मे जल लेकर जल के रूप मे समर्पित कर दीजिये और क्षमा प्रार्थना भी करनी है|
अब माला को अपने मस्तक से लगा कर पूरे सम्मान सहित स्थान दे !
इतने संस्कार करने के बाद माला जप करने योग्य शुद्ध तथा सिद्धिदायक होती है ! नित्य जप करने से पूर्व माला का संक्षिप्त पूजन निम्न मंत्र से करने के उपरान्त जप प्रारम्भ करे
अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्व मंत्रार्थ साधिनी साधय-साधय सर्व सिद्धिं परिकल्पय मे स्वाहा ! ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः !
जप करते समय माला पर किसी कि दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए ! गोमुख रूपी थैली ( गोमुखी ) में माला रखकर इसी थैले में हाथ डालकर जप किया जाना चाहिए अथवा वस्त्र आदि से माला आच्छादित कर ले अन्यथा जप निष्फल होता है !
यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो सामान्य साधक उपयोग में ले सकते हैं |

इस सम्बन्ध में योग्य जानकार से परामर्श लें और मंत्रादी की शुद्धि जांच लें|

मंत्र जाप करने के कुछ नियम

मंत्र जाप करने के भी कुछ नियम होते हैं। यदि आप उन नियमों का पालन करेंगे तो आपके घर में केवल सुख-शांति आयेगी, बल्कि आपका स्वाकस्य्े भी अच्छाी रहेगा
1-वाचिक जप
वाणी द्वारा सस्वर मंत्र का उच्चारण करना वाचिक जप की श्रेणी में आता है।
2- उपांशु जप-
अपने इष्ट भगवान के ध्यान में मन लगाकर, जुबान और ओंठों को कुछ कम्पित करते हुए, इस प्रकार मंत्र का उच्चारण करें कि केवल स्वंय को ही सुनाई पड़े। ऐसे मंत्रोचारण को उपांशु जप कहते है।
3- मानसिक जप-
इस जप में किसी भी प्रकार के नियम की बाध्यता नहीं होती है। सोते समय, चलते समय, यात्रा में एंव शौच आदि करते वक्त भीमंत्रजप का अभ्यास किया जाता है। मानसिक जप सभी दिशाओं एंव दशाओं में करने का प्रावधान है।
इन नियमों का भी पालन करें
1- शरीर की शुद्धि आवश्यक है। अतः स्नान करके ही आसन ग्रहण करना चाहिए। साधना करने के लिए सफेद कपड़ों का प्रयोग करना सर्वथा उचित रहता है।
2- साधना के लिए कुश के आसन पर बैठना चाहिए क्योंकि कुश उष्मा का सुचालक होता है। और जिससे मंत्रोचार से उत्पन्न उर्जा हमारे शरीर में समाहित होती है।
3- मेरूदण्ड हमेशा सीधा रखना चाहिए, ताकि सुषुम्ना में प्राण का प्रवाह आसानी से हो सके।
4- साधारण जप में तुलसी की माला का प्रयोग करना चाहिए। कार्य सिद्ध की कामना में चन्दन या रूद्राक्ष की माला प्रयोग हितकर रहता है।
5- ब्रह्रममुहूर्त में उठकर ही साधना करना चाहिए क्योंकि प्रातः काल का समय शुद्ध वायु से परिपूर्ण होता है। साधना नियमित और निश्चित समय पर ही की जानी चाहिए।
6- अक्षत, अंगुलियों के पर्व, पुष्प आदि से मंत्र जप की संख्या नहीं गिननी चाहिए।
7- मंत्र शक्ति का अनुभव करने के लिए कम से कम एक माला नित्य जाप करना चाहिए।

8- मंत्र का जप प्रातः काल पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए एंव सांयकाल में पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जप करना श्रेष्ठ माना गया है।